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________________ १५२ गो० कर्मकाण्डे आदी । १२ । अंते । १६ । सुद्धे । ४ वढिहिदे । ४ । इगिजुदे ४ ठाणा येबी याबाधाविकल्पं. गळि ४ दं गुणिसिदोडे सर्वस्थिति विकल्पप्रमितहानिवृद्धिप्रमाणमक्कु २० मल्लि प्रथमस्य हानिर्वा नास्ति वृद्धिर्वा नास्ति येदेकरूपं होनं माडि १९ युत्कृष्ट स्थितिज्ञातमप्पुदादोडदरोळकले. दोडे जघन्यस्थितिप्रमाणमक्कु । ४५ । मी जघन्यस्थितिज्ञातमादुदादोउिल्लि वृद्धिरूपदिदं कूडिदोडु५ त्कृष्ट स्थितिप्रमाणमक्कु । ६४ । मी प्रकारदिदमेकेंद्रियादिजीवंगळ सर्वप्रकृतिगळ्गे जघन्यस्थितियं साधिसुवुदिन्नु एकेद्रियादिगळु चाळीसिय तोसिय बोसिय प्रकृतिगळ जघन्यस्थितिबंधमनेनितेनितं माळ्परेकेंवोडे अनुपातत्रैराशिकविधानदिदं साधिसल्पडुगुमदें तेंदोडे सप्ततिकोटीकोटिसागरोपमस्थितियतुळ्ळ मिथ्यात्वप्रकृतिगे एकेंद्रियजीवं जघन्य स्थितिबंधमं रूपोनपल्यासंख्यातकभागोन सागरोपममं स्थितिबंधमं माडुगुमागळु नाल्वत्तकोटीकोटिसागरोपमस्थितिबंधंगळनळ्ळ चाळीसियं१० गळ्गेनितु जघन्यस्थितिबंधमं माळ्पनेंदितु अनुपातत्रैराशिकमं माडि प्र । सा ७० । को २ । फ। एतादृशी आबाधेत्यर्थः । तेन आबाधाचतुःषष्टितः एकषष्ठयन्तं षोडश षोडश समयैव । षष्टितः सप्तपश्चाशदन्तं पञ्चदश पञ्चदशसमयैव । षट्पञ्चाशतः त्रिपञ्चाशदंतं चतुर्दश चतुर्दशसमयव । द्वापञ्चाशतः एकान्नपञ्चाशदंत त्रयोदश त्रयोदशसमयैव । अष्टचत्वारिंशतः पञ्चचत्वारिंशदंतं द्वादश द्वादशसमयैव । तच्च काण्डकं ४ । आदी १२ अन्ते १६ सुदधे ४ वढिहिदे ४ रूवसंजदे १ इत्यानीताबाधाविकल्पैर्गणितं सर्वस्थितिविकल्प १५ प्रमाणं भवति २० । तत्र प्रथमे हानिर्वा वृद्धिर्वान इत्येकं त्यक्त्वा शेषे १९ उत्कृष्टस्थितावपनीते जघन्य स्थितिः ४५ वा जघन्यस्थिती युते उत्कृष्टस्थितिः ६४ भवति । एवमें केन्द्रियादीनां सर्वप्रकृतीनां जघन्यस्थितिबन्धं साधयेत् । इदानीं त्रैराशिकः कृत्वा साध्यते तद्यथा सप्ततिकोटीकोटिसागरोपमस्थितिकमिथ्यात्वस्य यद्य केन्द्रियः जघन्यस्थितिबन्धं रूपोनपल्यासंख्यातकभागोनसागरोपममात्र बध्नाति तदा चत्वारिंशत्कोटीकोटिसागरोपमस्थितिकानां किमिति ? प्र-स ७० को २। २० साठसे सत्तावन पर्यन्त स्थितिके भेदोंमें पन्द्रह-पन्द्रह समय ही आबाधा होती है। छप्पनसे तिरपन पर्यन्त स्थितिके भेदोंमें चौदह-चौदह समय ही आबाधाका प्रमाण होता है । बावनसे उनचास पर्यन्त स्थिति भेदोंमें तेरह-तेरह समय ही आबाधाका प्रमाण होता है । अड़तालीससे पैंतालीस पर्यन्त स्थितिभेदोंमें बारह-बारह समय हो आबाधा होती है। इस प्रकार ये काण्डक चार हैं। आदि जघन्य आबाधा १२ को अन्त उत्कृष्ट आबाधा १६ में घटानेपर २५ चार रहते हैं। प्रतिसमय एककी वृद्धि होनेसे एकसे भाग देनेपर तथा एक जोड़नेपर आबाधाके भेद पाँच होते हैं। इन विकल्पोंसे आबाधा काण्डकको गुणा करनेपर स्थितिके सब भेदोंका प्रमाण ४४५-२० होता है। इनमें से प्रथम भेदमें हानि-वृद्धि नहीं होती इसलिए एकको छोड़ शेष १९ को उत्कृष्ट स्थितिमें घटानेपर जघन्य स्थिति ४५ समय होती है । अथवा जघन्य स्थिति ४५ में उन्नीस जोड़नेपर उत्कृष्ट स्थिति ६४ होती है। इसी प्रकार एकेन्द्रिय आदिके सब प्रकृतियोंके जघन्य स्थितिबन्धको लाना चाहिए । अब त्रैराशिकोंके द्वारा उसे लाते हैं सत्तर कोडाकोड़ी सागर स्थितिवाले मिथ्यात्व कर्मका यदि एकेन्द्रिय जीव एक कम पल्यके असंख्यातवें भागसे हीन एक सागर प्रमाण जघन्य स्थितिबन्ध करता है तो चालीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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