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शुभाशिष
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याम तमना था प्रयासन अंतर थी आपनाराय छाया जब है यथा शुभाशिष खायला बागा पायथा छाया के तमारा या प्रयास ने शुक्राती साक्षरी, विज्ञा सुखी, पायो आजकाथा पधायश. बैन साहित्यना खनड विषयांनी नागद्वारी अजपा अक्षरनी उपासना द्वारा अवश्य जनअर भेोजपरी तथी शुल
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