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________________ सत्य हरिश्चन्द्र गगनांगण में उडी अप्सरा हर्षमत्त 'जय · रव' करतीं, हरिश्चन्द्र पर चारु सुगन्धित फूलों की वर्षा करतीं। गीत लग गई, लग गई, लग गई हो, प्रीति लग गई आज सत्य से ! पूर्व - पुण्य से शुभ दिन आया, सत्य - मूर्ति का दर्शन पाया, दिल की कलियाँ खिल गई हो ! सच का बल है अपरं - पारा ऋषि के तप का बल भी हारा, शाप की बेड़ी कट गई हो ! पर - दुख • भंजन पर • उपकारी, अतिमानव, करूणा - अवतारो, प्रेम की दुनिया बस गई हो ! कैसा है सुन्दर मुख - मण्डल, झलक रहा है तेज अचंचल, पाप - वृत्तियाँ डर गई हो ! 'अमर' सत्य पर अचल रहेंगे, निश्चित है पति विफल रहेंगे, ____सत्य की झांकी मिल गई हो ! पाठक, कलियुग की बातों का लक्ष्य न मन में अणु लाएँ, पूर्व युगों के महासत्य की ओर दृष्टि को दौड़ाएँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001309
Book TitleSatya Harischandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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