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________________ is ८ मति भी सुन्दर, तन भी सुन्दर, जीवन की हर गति भी कथनी सुन्दर, कृति भी सुन्दर, सुन्दर, आस - पास में प्रेम नौकर - चाकर पर दोन - सत्य हरिश्चन्द्र गीत गृह - पत्नी निज परिजन की मन की वृष्टि, समदृष्टि, सृष्टि, Jain Education International दुखी पर करुण - वह गृहिणी जग बड़ भागन हों, पत्नी प्रेम पुजारन हो । गृह = भीम भयंकर कष्ट सहे, किन्तु 'अमर' पति संग रहे, कदापि कहे, इक शब्द बुरा न प्रेम - पुजारन - वह स्नेह दया से सावन हो, पत्नी प्रेम पुजारन हो ॥ गृह - • - " हो, भावन हो ॥ वह सजनी, गृह - सुख साधन हो, पत्नो प्रेम पुजारन हो । गृह For Private & Personal Use Only · और अधिक क्या मंत्री को राजा ने निज मत समझाया, अवसर आने पर पत्नी के वरने का प्रण बतलाया । बीते कुछ दिन यों ही, आया मास वसन्त मनोहारी, प्रकृति नटी ने शोभा धारण की अति ही प्यारी - प्यारी । www.jainelibrary.org
SR No.001309
Book TitleSatya Harischandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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