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सत्य की विजय
सत्य - धर्म का विश्व में तेज प्रताप अखण्ड, भौतिक बल को ध्वस्त कर, पाता विजय प्रचंड !
मान सत्य ही अखिल जगत में, मानव - जीवन का बल है, विना सत्य के सबल - प्रबल भी, तुच्छ सर्वथा निर्बल है । पशु-बल आखिर पशु-बल ही है, कितना ही वह भीषण हो, सत्य धर्म की टक्कर खाकर, क्षण में जर्जर कण-कण हो ! संकट नहीं, परीक्षा है यह, यदि साहस - पूर्वक सहले, क्षण-भंसुर, संसृति में मानव, अमर नाम अपना कर लें ! हरिश्चन्द्र के सत्य धर्म का, चमत्कार देखा तुमने ? अन्तिम विजय दम्भ पर पाई, किस प्रकार देखा तुमने ? संकट क्या-क्या सहन किए, पर रहा पूर्णतः अविचल वह, स्वर्ण, अग्नि की ज्वाला में से निकला बनकर निर्मल वह ! सत्य-सूर्य की प्रभा स्वर्ग में पहुंची, सुर • मण्डल आया, देवराज वासव ने आकर चरण - कमल में सिर नाया। रत्न - जटित स्वणिल - आसन पर राजा-रानी बिठलाए, रोहित मुदित गोद में नृप की, शोभा अति सुन्दर पाए ! दुन्दुभि • नाद श्रवण कर काशी - नगरी की वासी जनता, मरघट में झट दौड़ी आई, बड़ी सत्य की पावनता । काशी के भूपति भी आए, हरिश्चन्द्र की सुन महिमा, खींच न लाती किसको जगमें, बड़ी त्याग की है गरिमा !
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