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सत्य हरिश्चन्द्र
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भंगी बोला-'बड़ा कष्ट है, घर पर तो यह कलहारी, गंगा - तट मरघट है मेरा, बनें वहाँ के अधिकारी। दाह - क्रिया करने से पहले, अर्ध कफन - कर ले लेना, दाह - अर्थ फिर समुचित लकड़ी आदि, प्रेम से दे देना।"
कौशल के सम्राट समुन्नत, सप्त सौध के अधिवासी, काला कम्बल कंधे डाले, बने आज मरघट - वासी !
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