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________________ सत्य हरिश्चन्द्र सत्य - धर्म की रक्षा के हित सब-कुछ अर्पण कर दीना । सत्य देव का, प्राणों की बलि देकर भी पूजन कीना । पता तुम्हें है राम, राज्य तज सहे दुःख के झटके क्यों ? पता तुम्हें है भूप युधिष्ठिर, वन • प्रतिवन में भटके क्यों ? सत्य - वीर थे प्रण - प्रतिपालक, सत्य नहीं अपना छोड़ा। अतएव भारती जनता के घट . घट से नाता जोड़ा। आज विश्व में कलि के कारण बढ़ा असत्य भयंकर है । बूढ़े, बालक, युवा सभी के मन में कर बैठा घर है ।। मर्द कहाँ वे जो निज मुख से कहते थे, सो करते थे। अपने प्रण की पूर्ति हेतु जो हँसते - हँसते मरते थे । गाड़ी के पहिये की मानिद पुरुष - वचन चल आज हुए। सुबह कहा कुछ, शाम कहा कुछ, टोके तो नाराज हुए । अखिल विश्व के रंगमंच से हो असत्य की क्षय क्षय क्षय । आओ, फिर से सत्य प्रभू की बोलें जग में जय जय जय ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001309
Book TitleSatya Harischandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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