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________________ उपक्रम जगती ज्योति अखण्ड नित, शुभ सत्य की यत्र । यश, लक्ष्मी, सौभाग्य, सुख, रहते अविचल तत्र ॥ आज सत्य की महिमा का मधु गान सुनाने आया है । अन्तस्तल से जन्म जन्म के पाप धुलाने आया हूँ || अखिल विश्व में एक सत्य ही जीवन उच्च बनाता है । बिना सत्य के जप, तप, योगाचार भ्रष्ट हो जाता है | वीर प्रभू का प्रश्नव्याकरण अंग सूत्र में है कहना । 'सत्य स्वयं भगवान्' इसी की आज्ञा में निशि-दिन रहना ॥ यह पृथ्वी, आकाश और यह रवि - शशि तारामण्डल भी । एक सत्य पर आधारित हैं, क्षुब्ध महोदधि चंचल भी ॥ जो नर अपने मुख से वाणी बोल पुनः हट जाते हैं । नर - तन पा कर पशु से भी वे जीवन नीच बिताते हैं || 10 मानव जीवन पुष्प मनोहर, सत्य सुरभि है अति प्यारी । बिना सुरभि के पुष्प जगत में पाता है अपयश भारी || नश्वर मृदु तन, नश्वर वैभव, नश्वर मानव जीवन है । अविनाशी बस एक मात्र यह त्रिभुवन में सच का धन है । M भारत ने भगवान् सत्य की महिमा को पहचाना था । अस्तु, भूमि से स्वर्गलोक तक कीर्ति - वितान विताना था ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001309
Book TitleSatya Harischandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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