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का प्रयोग । एक वार मैंने डोली शब्द के लिए नर - वाहन शब्द का प्रयोग किया था। इस पर पाँचवें सवारों के लेखकों ने काफी हो - हल्ला मचाया। और, मुझे सत्य महाव्रत भंग की कोटि में ढकेलने की असफल कोशिश भी की। किन्तु, उन विचारों को पता नहीं, कि वे स्वयं ही सत्य - व्रत का भंग कर रहे हैं। अज्ञानता ही सबसे बड़ा पाप है। अतः मैं अपने आत्मप्रिय पाँचवें सवारों को हार्दिक परामर्श देता है कि वे प्रथम तो लेखन की दृष्टि से लेखक सवारों में अपने को गिनाए ही नहीं। यदि गिनाने का मोह न छोड़ सकें, तो उन्हें अपने को चार सवारों में गिनाना चाहिए । चार सवारों में गिनाने के लिए उन्हें जैन एवं अजैन प्राचीन शास्त्रों एवं ग्रन्थों का व्यापक एवं गंभीर समीक्षात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन करना चाहिए। यदि उन्होंने इस दिशा में कुछ भी अध्ययन किया होता, तो डोली को नर - वाहन मानने से इन्कार न होता उन्हें । मैं यहाँ प्राचीन जैन एवं जैनेतर साहित्य से कुछ उल्लेख, मात्र उनकी जानकारी के लिए ही उपस्थित कर रहा हूं। वे जरा आँख गड़ा कर देखें, कि डोली के लिए नर - वाहन शब्द कितने अधिक दीर्घ-काल से प्रचलित होता आ रहा है"नरयान-नरवाह्य यानम् --मनुष्य - वाह्य पालखी वगेरे वाहन ।"
शब्द रत्न महोदधि, पृष्ठ ११६०
संग्राहक : पन्यास श्री मुक्तिविजयजी अठारह पुराणों में पद्म-पुराण लघु महाभारत माना जाता है। बहत बड़ी गरिमा है पुराण-साहित्य में पद्मपुराण की। पद्मपुराण में शिविका अर्थात् डोली के लिए नर - यान अर्थात् नरवाहन शब्द का स्पष्टतः प्रयोग है। प्रसंग है, मर्यादा पुरुषोत्तम राम लंका विजय के अनन्तर पूष्पक विमान द्वारा अयोध्या आए हैं। नगर में शोभा यात्रा के हेतु पुष्पक विमान से उतर कर नरयान पर सवार हुए हैं । मूल पाठ देखिए
"पुष्पकादवरुह्याशु नरयानमथारुहत् । सीतयासहितो रामः परिवार समाक्तः ॥"
पद्म पुराण, पाताल खण्ड, अ. ३, श्लोक २४ मानव नरेन्द्र श्री भोजदेव संस्कृत - साहित्य के महान् विद्वान् नरेश हो चुके हैं । सरस्वती कण्ठाभरणम् एवं पातञ्जल योग-वृति,
चिरतन के झरोखे से।
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