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________________ देखता रहता है। परन्तु देखने के बाद में क्या है ? इन सारे दृश्यों को देखने वाला द्रष्टा तो एक ही है। अत: भले ही देखने के लिए उसने खिड़कियाँ अलग-अलग अपनाई हों। ऐसा तो नहीं होता कि पूर्व की खिड़की से से देखने वाला कोई और है, और पश्चिम आदि की खिड़की से देखने वाला कोई और । वह तो एक ही व्यक्ति होता है, जिसे बाद में भी उनकी स्मृति आती है। हाँ तो, जैसे एक व्यक्ति एक महल में रह कर भी, अलग - अलग दिशाओं के अलग-अलग द्वारों से स्वयं अलग-अलग-दश्य देखता है और बाद में मैंने देखा ऐसा कहता है, ऐसे ही शरीर भी एक महल है। इसमें रहने वाला आत्मा भी आँख के द्वार से झाँक कर देख लेता है, कानों के द्वार से सुन लेता है, जिह्वा के द्वार से चख लेता है, नाक के द्वार से सुगन्ध - दुर्गन्ध सूघ लेता है और स्पर्शन्द्रिय के द्वार से ठंडा-गर्म, हलका - भारी आदि स्पर्शों का अनुभव करता है और बाद में वही संकलित रूप से इन सारे अनुभवों को स्मति के रूप में याद रखता है। अनुभवों का केन्द्र एक है, तो स्मृति का केन्द्र भी एक है। आत्मानुभूति का होना ही सम्यकत्व है : शरीर और इन्द्रियाँ आदि से आत्मा की कीमत ज्यादा समझना, समय आने पर आत्मा की रक्षा के लिए शरीर और शरीर से सम्बन्धित तमाम वस्तुओं से निर्लिप्त, तटस्थ हो जाना, छोड़ने में न हिचकना ही वास्तव में आत्मानुभूति है और यही उपलब्धि सम्यक्त्व का लक्षण है। उक्त सम्यक्त्व के होने पर ही साधना प्राणवती होती है, अन्यथा नहीं। अगस्त १६७४ चित्तम के झरोखे से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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