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जीवन का विसर्जन । भविष्य के संयमी जीवन के लिए पाप-कर्म से दुषित पूर्व - जीवन का परित्याग आवश्यक है। पूर्व सस्कारों का परिमार्जन हुए बिना नवीन जीवन के निर्माण का कोई अर्थ नहीं है। कितना ही सुन्दर रंग हो, गंदे वस्त्र पर कैसे चमक सकता है ? पुराना सड़ा - गला गन्दा जीवन त्याग कर स्वच्छ एवं भव्य नवीन जीवन को अपनाना, साधक का पुनर्जन्म है। और, यह वह आध्यात्मिक पुनर्जन्म है, जिसे साधक पूर्व दूषित जीवन की दृष्टि से मरण प्राप्त कर, स्वयं शुद्ध जीवन के रूप में दुबारा जन्म ग्रहण करता है । प्रस्तुत सूत्र के टीकाकार आचार्य नमि ने इसी सन्दर्भ में कहा है
"आत्मानं = अतीत सावद्ययोगकारिणम् अश्लाध्यम् "व्युत्सृजामि ।" सितम्बर १९७३
AAJTAKARI
सामायिक समभाव साधना, यही मुक्ति का पथ अनुपम है। रोष - तोष से मुक्त चेतना, मात्र यही सर्वोत्तम शम है ।
कोन देश है, कौन पंथ है, प्रश्न सभी ये अनपेक्षित है। सामायिक की सिद्धि हेतु तो, सहज समत्वम् ही समुचित है।
श्रमण-परम्परा की सामायिक-साधना :
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