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________________ ये सब क्या हैं ? इसी माया के विविध रूप हैं। दंभ-रूप रावण के अलग-अलग चेहरे हैं । इसी प्रकार चोरी, व्यभिचार और परिग्रह के मूल में भी तो क्या है ? यही दंभ, यही माया ! जिसका हृदय सरल है, मन सरल है, वचन सरल है और कर्म भी सरल है-वहाँ बुराइयों को छिपने की जगह ही कहाँ है ? सरल-सपाट भूमि पर पानी डालिए तो वह सीधा बहता चला जाएगा। कहीं कोई रुकावट नहीं आएगी। किन्तु, यदि भूमि विषम होगी, ऊंची - नीची होगी, गड्ढे और झाड़-झंखाड़ बीच में होंगे तो पानी रुक जाएगा, अनेकानेक जहरीले सांपों एवं अन्य जन्तुओं को भी छुपने को जगह मिल जाएगी। मानव के मन का खेत भी समतल होना चाहिए। उसमें किसी तरह को छुपावट नहीं रहनी चाहिए। दंभ की झाडियाँ नहीं रहनी चाहिए । जला छुपावट होगी, अवरोध होगा, वहाँ हर बुराई को छुपने को जगह मिलेगी, घुस-पैठ का अवकाश मिलेगा। धीरे-धीरे समग्र जीवन - भूमि पर दुर्गुणों की सघनताएँ इस प्रकार छा जाएँगी कि मानव, मानव न रह कर कुछ और ही हो जाएगा, जीवन का कण-कण विषाक्त बन जाएगा। इसीलिए मैंने कहा है-समस्त दुर्गुणों का मूल माया है, दंभ है और कपट है। और, समस्त सद्गुणों की उर्वर - भूमि है--- सरलता, ऋजुता, मृदुता। _भगवान महावीर से पूछा गया-"जिस पवित्र धर्म का आपने उपदेश किया है-उसका आधार क्या है ? वह कहाँ टिक सकता है और कहाँ बढ़ सकता है?" उत्तर में महावीर ने एक सूक्त कहा "धम्मो सुद्धस्स चिट्ठई ।"-उत्तराध्ययन, ३, १२. -शुद्ध हृदय में ही धर्म ठहरता है । प्रश्न फिर आगे बढ़ा। हृदय की शुद्धता का सवाल आया कि हृदय को पवित्र एवं शुद्ध कैसे बनाया जा सकता है ? उत्तर में भगवान् ने कहा-“सोही उज्जुयभूयस्स ।" उत्तराध्ययन, ३, १२ -ऋजुता, सरलता से हृदय को पवित्र किया जा सकता है। जहाँ सरलता होगी, वहीं पवित्रता होगी। हृदय को ऋजु बनाए बिना वह शुद्ध नहीं हो सकता । प्रमुख जैनागम भगवती सूत्र में सम्यक्-दृष्टि एवं मिथ्यादृष्टि का विश्लेषण करते हुए बताया है-'माई मिच्छादि ठी।" धर्म की आधारभूमि : ऋजुता ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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