________________
विज्ञपुरुषों से पूछ - ताछ कर अच्छे - से - अच्छे नाम रखे जाते हैं । उनकी पृष्ठभूमि में कोई - न - कोई (महत्त्वपूर्ण) अर्थ बोध भी होता है । और, कुछ नाम ऐसे भी होते हैं, जो यों ही रख दिए जाते हैं। अर्थ की दृष्टि से देखा जाए, तो कुछ भी अर्थ स्पष्ट नहीं होता है। जाने दीजिए नाम की कथा लम्बी है। मैं यहाँ एक ऐतिहासिक नाम की चर्चा कर रहा हूँ। वह कितना अर्थ गम्भीर है, यह आप अग्रिम चर्चा पर से अच्छी तरह समझ सकेंगे।
जैन-इतिहास परम्परा के अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर हैं। मैं यहाँ उक्त नाम की ही अर्थवत्ता का यत्किचित उल्लेख करना चाहता है। ऐसे तो भगवान् महावीर के अनेक नाम हैं। उन्हें सन्मति, १ महत्ति, वीर, महावीर तथा वर्द्धमान आदि अनेक पूजाहं नामों से सम्बोधित किया है । भगवान् महावीर के नामकरण संस्कार के समय राजा सिद्धार्थ द्वारा वर्तमान नाम रखा गया था। उक्त नाम की भी अर्थवत्ता एवं गुणवत्ता चतुर्दश पूर्वधर आचार्य श्री भद्रबाहु स्वामी ने कल्पसूत्र में अंकित की है। नामकरण करते हुए राजा सिद्धार्थ ने स्वयं कहा है
"हे देवानुप्रिय ! जब यह बालक गर्भ में आया, तब हमारे मन में इस प्रकार का चिन्तन, विचार एवं संकल्प उत्पन्न हुआ कि जिस दिन से हमारा यह पुत्र गर्भ में आया है, उसी दिन से हमारी रजत - स्वर्ण में वृद्धि होने लगी है, प्रीति - सत्कार की दृष्टि से भी अभिवृद्धि होने लगी है तथा सामन्त एवं राजा भी हमारे वश में हुए हैं, अत: जब यह बालक जन्म लेगा, तब हम उसके गुणों के ही अनुरूप गुण-निष्पन्न नाम रखेंगे। आज हमारी मनोकामना सफल हुई है। अतः हम इस कुमार का नाम वर्द्धमान रखते हैं ।"२
वर्द्धमान नाम के अनुसार ही सन्मति आदि नाम भी मात्र रूढ़ नाम नहीं है, अपितु व्याकरण सम्मत व्युत्पत्ति मूलक नाम हैं। भगवान महावीर के चरित्र ग्रन्थों में अनेकशः उक्त नामों का उल्लेख हुआ है एवं संस्कृत तथा हिन्दी टीकाकारों ने उक्त नामों की महत्त्व द्योतक व्युत्पत्तियां की हैं। किन्तु, मैं यहाँ ग्रन्थाभाव के कारण विस्तार में जाने की स्थिति में नहीं है। जैसा कि मैंने पहले संकेत किया है-मेरा चिन्तन महावीर नाम पर ही केन्द्रित है।
भगवान् महावीर, महावीर क्यों हैं ?!
१४१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org