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________________ से विराट नगर का निर्माण किया एवं विशाल राज्य की स्थापना की। इस समय देवर्षि नारद राजा युधिष्ठर के पास आते हैं और प्रशासन के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछते हैं। प्रश्नों की प्रक्रिया अधिकांशतः रामारयण के अनुसार हुई है। तथापि कुछ प्रेरणाप्रद अंश हम यहाँ उद्धृत करने का लोभ - संवरण नहीं कर पाते । महाभारत, लोकसभाख्यान पर्व अध्याय, ५ कच्चिदर्थाश्च कल्पन्ते, धर्म च रमते मनः ।। सुखानि चानुभूयन्ते, मनश्च न विहन्यते ।।१७॥ -राजन् ! तुम्हारा धन, आवश्यक कार्य एवं निर्वाह के लिए पूरा पड़ जाता है ? क्या धर्म में तुम्हारा मन प्रसन्नता पूर्वक लगता है ? क्या तुम्हें इच्छानुसार सुख-भोग प्राप्त होते हैं ? तुम्हारे मन को किसी प्रकार का आघात, विक्षेप तो नहीं पहुँचता है ? कच्चिद् विद्याविनीतांश्च नराज्ञानविशारदान् । यथार्ह गुणतश्चंव, दानेनाभ्युपपद्यसे ॥५४।। -क्या तुम विद्या एवं विनयशील तथा ज्ञाननिपुण मनुष्यों को उनके गुणों के अनुसार यथायोग्य धन आदि देकर उनका सम्मान करते हो? कच्चिद् दारान्मनुष्याणां तवार्थे मृत्युमीयुषाम् । व्यसनं चाभ्युपेतानां विभार्षि भरतर्षभ ।।५।। -भरत श्रेष्ठ ? जो लोग तुम्हारे हित के लिए सहर्ष मृत्यु का वरण कर लेते हैं तथा भारी संकट में भी पड़ने को प्रस्तुत हो जाते हैं, उनके स्त्री, पूत्र एवं अन्य पारिवारिक जनों की तुम रक्षा करते हो न ? कच्चित त्वमेव सर्वस्याः, पृथिव्याः पृथिवीपते । समश्चानभिशङक्यश्च, यथामाता तथापिता ॥५७॥ -पृथ्वीपते ! क्या तुम्हारे समग्र राज्यकीय भूमण्डल की प्रजा तुम्हें ही समदर्शी एवं माता - पिता के समान विश्वसनीय मानती है न ? कच्चिज्ज्ञातीन् गुरुन् वृद्धान् वाणिजः शिल्पिन: श्रितान् । अभीक्ष्णमनुगहणासि धनधान्येन दुर्गतान् ।।७२।। भारतीय-संस्कृति में प्रशास्ता की : कर्तव्य भूमिका : १११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001308
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1989
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size10 MB
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