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" मातापित्रीश्च शुश्रूषां ये कुर्वन्ति सदाद्रताः । वर्जयन्ति दिवास्वप्नं ते नरा: स्वर्गगामिनः ॥" ६६, २४
--जो सदा आदर एवं भक्ति-भाव से माता - पिता की सेवाशुश्रूषा करते हैं, तथा जो आलसी बन कर दिन में यों ही सोये पड़े नहीं रहते, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं।
"सर्वहिंसा-निवृताश्च साधु - संगाश्च ये नराः। सर्वस्यापिहिते - युक्तास्ते नरा: स्वर्गगामिनः ॥"६६, २५
-जो मनुष्य सब प्रकार के हिंसा कर्मों से निवृत्त रहते हैं, सदाचारी सत्पुरुषों की संगति करते हैं, सबके हित साधन में अनुरक्त रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं ।
" सर्वलोभनिवृताश्च सर्वसाहाश्च ये नराः ।
सर्वस्याश्रयभूताश्च ते नरा: स्वर्गगामिनः ।।" ६६, २६ - जो सब प्रकार के लोभ - लालच से निवत्त रहते हैं, सबकुछ सहन करने की क्षमता रखते हैं और सबके आश्रयदाताआधारभूत होते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं।
" सहस्र परिवेष्टारस्तथैव च सहस्रदाः ।
त्रातारश्च सहस्राणां ते नरा: स्वर्गगामिनः ॥" ६६, २७ -जौ हजारों साधारण जनों को अपने साथ लगाये रहते हैं। हजारों को ही आवश्यकतापूर्ति हेतु दान देते हैं । और हजारों लोगों की यथाप्रसंग रक्षा करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं।
" ये याचित्ता: प्रहृष्यति प्रियं दत्वा वदन्ति च ।
त्यक्त दानफलेच्छाश्च ते नरा: स्वर्गगामिनः ॥" ९६,३२
-जो किसी के द्वारा याचना करने पर प्रसन्न होते हैं, और अभोष्ट दान दे कर प्रिय वचन बोलते हैं, साथ ही दिए गए दान के प्रतिफल की कोई कामना नहीं रखते हैं, वे स्वर्गगामी होते हैं।
"स्वयमुत्पाद्य दातारः पुरुषा स्वर्गगामिन: ।" ९६,३२
-जो महानुमाव स्वयं श्रम द्वारा उपार्जन कर के दान देते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं ।
"द्विषतामपि ये दोषान्न वदन्ति कदाचन । कीर्तयन्ति गुणान्येव ते नराः स्वर्गगामिनः ॥"६६, ३४
स्वर्ग-लोक के ये यात्री:
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