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विगत विभाजन काल में जो हुआ है, क्या वस्तुत: वह धर्म-प्रधानता है ? बच्चों का, बूढ़ों का निर्दयता के साथ कत्ल हुआ, मातृ-जाति की अस्मत लूटी गई-उनके अंग-भंग किए गए, निरपराध जनता को लूटा गया, मन्दिर-मस्जिद तोड़े गए, क्या यही गर्व करने जैसी हमारी पवित्र धार्मिकता है ? आज की ताजा घटनाओं में भिवंडी-बम्बई ( महाराष्ट्र) और पंजाब में जो दुर्घटित हुआ है, धर्म-रक्षा के नाम पर जो निरपराध स्त्री-पुरुषों का दुर्नाम हत्याचक्र चला है, लूट-मार, बलात्कार, अपहरण, आगजनी आदि का, जो तूफान हुआ है, क्या वह सचमुच में ही हमारे मस्तक पर धर्म-प्रधानता का मंगल तिलक है ? हजारों वर्ष हो जाते हैं, हमें परस्पर साथ रहते, साथ बोलते-बतलाते । फिर भी एक दूसरे को अच्छी तरह समझ नहीं पाए हैं । भौगोलिक दीवारें भले ही टूट रही हैं, पर हमने अपने चारों ओर मान्यताओं की ऐसी कुछ अभेद्य दीवारें खड़ी कर दी हैं कि उनकी कैद में मानव-जाति वंश-परम्परा से कैदी बनी आ रही है | और खेद इस बात का है कि इस कैद में वह मुक्त कण्ठ से अपने गौरव का गुणगान करती
"भारत की संस्कृति, समन्वय मूलक गंगा की संस्कृति है," - यह हमारा आए दिन का नारा है । हम मंच पर बड़े गर्व से कहते हैं कि विभिन्न संस्कृतियों, परम्पराओं का संगम एवं समन्वय केन्द्र है हमारी संस्कृति । जिस प्रकार गंगा में मिलकर सब नदी-नाले गंगा हो जाते हैं, एक पवित्र धारा का रूप ले लेते हैं, वैसे ही हमारी संस्कृति में भी सबको मिलाने की, एकरूप देने की, विविधता में एकता स्थापित करने की अद्भुत क्षमता है । कभी रही होगी यह क्षमता, कभी रही होगी वह गंगा की संस्कृति । परन्तु आज? आज तो इसके सर्वथा विपरीत स्थिति है | आज के भारतीय समाज में धर्म, संप्रदाय, प्रान्तवाद, जातिवाद आदि के नाम पर घृणा, तिरस्कार, अपमान, वैर - विद्वेष आदि के सिवा और क्या मिलता है? दूर के भेदों को तो जाने दीजिए, एक धर्म परम्परा के ही उपभेदों में कहाँ मेल है, जाति की ही उपजातियों में कहाँ बन्धुता है ? कभी-कभी तो एक ही वृक्ष की ये शाखाएँ-उपशाखाएँ परस्पर इतनी अधिक टकरा जाती हैं, कि महाभारत-युद्ध का दृश्य सामने उपस्थित हो जाता है, 'अहिनकुलम् के जन्म-जात वैर की स्मृति जागृत हो जाती है । महर्षि मनु के शब्दों में अखिल विश्व को मानवता का, सच्चरित्रता का मंगलपाठ पढ़ाने वाले हम भारतीय, आपस के क्षुद्र मतभेदों के इतने अधिक शिकार हो जाते हैं, और भूल ही जाते हैं कि हम सब एक धरती माँ के पुत्र मानव हैं । अपने सम्बन्ध में
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