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________________ अत्याचार एवं उत्पीड़न में संलग्न महानुभावों को सोचना चाहिए कि आखिर अत्याचार की फलवत्ता अत्याचार के रूप में ही प्राप्त होती है । आक्रमण प्रत्याक्रमण के रूप में ही प्रतिफलित होता है । जो बालक आज अत्याचार ग्रस्त हो रहे हैं, उनके मन में से मानवीय संवेदनशीलता का निर्झर सूखता जा रहा है । विद्रोही मन दुर्भावना के घातक - विष से भर जाता है और अन्तत: समय आने पर उसकी प्रतिक्रिया क्रूर - अत्याचारों के रूप में ही प्रतिफलित होती है । अधिकांश अत्याचारों की पृष्ठभूमि में ऐसी ही कोई निर्मम अत्याचार की कहानी रही हुई होती है । पीड़ा के गर्म आँसुओं के साथ अन्दर की मानवता प्राय: बह ही जाती है । भारत की संस्कृति करुणा एवं मैत्री की उदार संस्कृति है । उसका सदा-सदा से सदा-सदा के लिए पावन ब्रह्मघोष है - "आत्मवत्सततं पश्येदपि कीटपिपोलिकाम्" और तो क्या, क्षुद्र-से-क्षुद्र कीड़ों - चींटियों तक को अपने समान, अपनी आत्मा के समान ही देखना चाहिए । वैष्णव - परंपरा तो हर प्राणी में आराध्य ईश्वर के दर्शन की बात करती है । श्रमण-संस्कृति के महान उन्नायक महाश्रमण महावीर, तो पशु जगत् के प्रति भी सद्गृहस्थ को पारिवारिक व्यवहार जैसा मानवीय व्यवहार रखने की प्रेरणा देते हैं । उनका संदेश है - "घर पर काम कर रहे जानवरों को भी घर के ही एक सम्मान्य व्यक्ति के रूप में देखो । उनके प्रति किसी भी तरह का अमानवीय अभद्र व्यवहार न करो । - किसी भी पशु को कठोर बन्धन से मत बाँधो । - निर्दयता के साथ किसी भी तरह की घातक चोट न करो । - सावधान रहो । किसी भी रूप में उनका अंग - भंग न होने पाए । - शक्ति से अधिक उन पर अति भार न लादा जाए । सीमा से, शक्ति से अधिक काम लेना पाप है । - समय पर दिए जाने वाले आहारादि का विच्छेद न करो । उसमें किसी तरह की कटौती भी न करो ।" कितना उदात्त कल्याणकारी जीवन-सन्देश है । परन्तु खेद है, जो व्यवहार कभी पशु तक के लिए करना निषिद्ध था, आज वही व्यवहार अनेक अज्ञानग्रस्त लोक मनुष्यों के साथ, करुणापात्र बालकों तक के साथ कर रहे हैं। प्रस्तुत स्थिति पर मानवीय दृष्टिकोण से सोचने - विचारने की महती अपेक्षा है, (३१४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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