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- किन्तु जो काम पार नहीं लग सकता, जिसका कोई परिणाम एवं फल नहीं दीखता, उसके लिए श्रम करने से क्या लाभ ? जब मृत्यु का आना निश्चित ही है, तब इस व्यर्थ के हाथपैर मारने का कुछ मतलब ?"
-" जो प्रारंभ में ही यह जानकर कि मैं पार न पा सकूँगा, उद्यम नहीं करता, यदि उसकी हानि होती है, तो देवि, उसमें उसी के दुर्बल प्राणों का दोष है । साहसी मनुष्य अपने निर्धारित संकल्प के अनुसार लोक में अपने कार्य की योजना बनाते हैं और तदनुकूल यत्न करते हैं । सफलता मिलेगी या नहीं, इस विकल्प में उलझे रहना उनका काम नहीं है। कर्म का फल निश्चित है, देवि! क्या तू यह नहीं देख रही है कि मेरे सब साथी डूब गए हैं, और मैं अब भी तैर रहा हूँ, तुझे अपने पास देख रहा हूँ | इसलिए मैं उद्यम करूँगा ही, जब तक मुझ में शक्ति है, जब तक मुझ में बल है, समुद्र के पार जाने के हेतु पुरुषकार-पुरुषार्थ करता ही रहूँगा ।” महाजनक ने तैरने के दृढ संकल्प के साथ देवी मणिमेखला को उत्तर दिया | देवी ने परीक्षा लेने में कसर नहीं छोडी । राजकुमार के साहस को तोडने की काफी चेष्टा की परन्तु, राजकुमार का संकल्प अक्षुण्ण रहा । कथाकार कहता है, राजकुमार की दृढ़ आस्था से पूर्ण जीवन स्पर्शी गाथाओं को सुनते-सुनते अन्तत: देवी अत्यन्त प्रसन्न हो गई । उसने मातृवत् अपनी बाहें फैला दी और महाजनक को गोद में उठाकर सकुशल मिथिला ( विदेह) पहुँचा दिया ।
महाजनक मृत्यु के अतल गर्त में जाने की स्थिति में है । समुद्र को पार करना-तट पर पहुँचना आसान नहीं है, एक तरह असंभव ही है | और इधर देवी आकाश में उसके सम्मुख है और कोई होता, तो रक्षा के लिए देवी के सामने गिड़गिड़ाता, प्राणों की भिक्षा माँगता, रोता-चीखता, चिल्लाता, हाय-हाय करता । परन्तु साहस का धनी राजकुमार महाजनक ऐसा कुछ नहीं करता है । समुद्र को तैरने के प्रयत्न में ही लगा है । देवी बार-बार उसे हतोत्साहित करती है, परन्तु वह साहस के साथ हर बार अपने कर्म करते रहने के दृढ़ संकल्प को ही दुहराता है । अन्तिम परिणाम क्या होगा ? इसकी उसे कोई चिन्ता नहीं है । उसके समक्ष कर्म का वर्तमान है, फल का भविष्य अभी उसकी दृष्टि में नहीं है । फल की अधिक चिन्ता मनुष्य को कर्म की साधना में शिथिल कर देती है। कर्मयोगी श्रीकृष्ण का कर्मयोग से सम्बन्धित सन्देश महाजनक में संपूर्ण रूपसे प्रकाशमान है | सन्देश है-' कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन ।' मानव, तेरा एकमात्र कर्म में ही अधिकार है, फल में नहीं।
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