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चले न, छोड़ना क्या होता है ?" बस, व्यंग ने वीर युवक की आत्मा को जगा दिया | स्नान करते-करते ही उठ खड़ा हुआ और घर से बाहर निकल आया ।
और लो भई, चला मैं तो । कोई व्यवस्था की उसने ? घर की व्यवस्था का दायित्व बेटे को सौंपा ? कुछ भी तो नहीं किया । जिस स्थिति में बैठा था, उसी स्थिति में उठकर चल पड़ा, महाप्रभु महावीर के श्रीचरणों में । इसे कहते हैं तेज, इसे कहते हैं कर्मयोगी, इसे कहते हैं अध्यात्म-योगी । ऐसा कर्म-योगी था धन्ना, जिसने जहाँ-जहाँ चरण रखा विशाल ऐश्वर्य, यश-प्रतिष्ठा एवं नाम कमाया और जब समय आया, तो सब-कुछ छोड़कर घर से बाहर निकल आया, जैसे सघन बादलों को चीरकर सहस्र -रश्मि-सूर्य बाहर निकल आया है ।
मैं महाराष्ट्र से समागत घोड़नदी संघ के स्नेहशील भक्तों से कहता हूँ कि आप अपने पूर्व पुरुषों की स्मृति को बनाए रखें । उनकी गरिमा को याद रखें । जीवन के धर्म और कर्म के क्षेत्र में, जो दायित्व आप पर हैं, उन्हें निष्ठा एवं साहस के साथ पूरा करने का प्रयत्न करें | आपके अपने जो संघटन बिखर रहे हैं, उन्हें एकत्व का रूप दें। आप लोग सिर्फ परलोक सुधारने की चर्चा में ही उलझ कर न रह जाएँ, इस लोक को सुधारने का प्रयास करें। परलोक उसी का सुधरेगा, जो इस लोक को सुधार लेता है | याद रखिए, अपना जीवन भी तभी बनेगा-सुधरेगा, जो अपने साथ दूसरों का जीवन भी बनाता है, सुधारता
है ।
इस पुण्य-भूमि का आशीर्वाद आपके साथ है । धन्ना ने इसी देवतात्मा वैभारगिरि की पुण्य-भूमि पर दीक्षा ली थी और यहीं अन्तिम समाधि लाभ भी प्राप्त किया था | साला-बहनोईकी यह इतिहास विश्रुत जोड़ी है । इस पावन-भूमिपर अनेक व्यक्तियों के जीवन में धर्म-कर्म की ज्योति जली है | इसी भूमि पर धर्म को कर्म का रूप और कर्म को धर्म का प्रकाश मिला है । कर्म में धर्म और धर्म में कर्म का अर्थ है, कर्म करते हुए भी अकर्म की स्थिति । यही आदर्श है, इस पुण्य-भूमि का | आप अपनी आध्यात्मिक चेतना जगाएँ, सामाजिक चेतना जागृत करें । सिर्फ अपने जीवन के लिए ही नहीं, सबके कल्याण के लिए प्रयत्न करें। सबके हित में अपना हित भी समाहित है । आप अभी जो प्रार्थना कर रहे थे-सर्व जगत् का कल्याण हो । जितने लोग हैं, वे एक-दूसरे के हित में योगदान दें। सिर्फ तन के ही नहीं, मन के दोष भी नष्ट हों । सब प्राणी सुखी हों
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