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होना है, मोक्ष प्राप्त करना है । अत: इन्हें भी मोक्ष पहुँचा दूं । मोक्ष-मार्ग का उपदेश दूं, सब-कुछ छोडकर तप करने का उपदेश दूं । ऐसा कुछ नहीं सोचा उन्होंने । वे तो यथार्थ द्रष्टा थे । जीवन की धारा को सम्यक्-दिशा में गति देने वाले सम्यक्-ज्ञाता, द्रष्टा एवं उपदेष्टा थे ।
महाश्रमण भगवान महावीर के जीवन का अनुशीलन करें और देखें, उस समय क्या स्थिति थी मानव-समाज की ? एक वर्ग विशेष का आधिपत्य था समाज पर, जो अपने आपको सर्व-श्रेष्ठ मान रहा था । भले ही उसका जीवन कैसा ही क्यों न रहा हो, उसके बनाये विधि-विधान से सबको चलना होता था । इतिहास साक्षी है- यज्ञों में पशु-हिंसा हो रही थी | यज्ञ की पवित्र वेदी मूक पशुओं के रक्त से रंगी रहती थी । यज्ञ-वेदी पर हजारों-लाखों बकरे कट रहे थे, वृषभ तक काटे जा रहे थे और कहीं-कहीं तो नरमेध यज्ञों में मनुष्य तक की बलि दी जा रही थी । यदि आप पुराणों के पन्ने खोलकर पढ़ेंगे, तो आपका मन कांप उठेगा | पुराण उस पुराकाल की मनोवृत्ति को स्पष्ट करते हैं । आज जो शाक्त परम्परा में बलि दी जाती है वह उस पुरातन मनोवृत्ति का ही भग्नावशेष है । उस समय अनेक अन्य आचार्य एवं धर्म-गुरु यह सब बीभत्स दृश्य देख रहे थे । क्या किसी ने आवाज उठाई ? भगवान महावीर यथार्थ द्रष्टा थे । महावीर से पूर्व पार्श्वनाथ द्रष्टा थे । नेमिनाथ द्रष्टा थे, जिन्होंने विवाह-शादियों एवं अन्य कार्यक्रमों में हो रही, इस हिंसा को, पशु-वध को रोकने के लिए विना विवाह किये ही लौट आए । भगवान पार्श्वनाथ ने तप के रूप में व्यर्थ के देह दण्ड रूप हिंसा का विरोध किया | अनन्तर पार्श्व संघ में अनेक धर्माचार्य हुए हैं। उनके सामने मांसाहार होता रहा है, यज्ञों में बलि.दी जाती रही है । परन्तु उन्होंने उसके विरोध में कोई आवाज उठाई हो, यज्ञीय हिंसाप्रधान सामाजिक वातावरण को परिवर्तित किया हो, ऐस कहीं उल्लेख नहीं मिलता । इसमें गलती इतिहासकारों की नहीं, आपकी है । गलती होने का तात्पर्य है, उस युग के आचार्यों ने जन-जीवन की समस्याओं को हल करने का कोई विशेष प्रयत्न किया ही नहीं | अतः भले ही भगवान नेमिनाथ हों, पार्श्वनाथ हों या भगवान महावीर हों, जो यथार्थ में ज्ञाता-द्रष्टा होते हैं, वे ही अपने सामने जो धार्मिक या सामाजिक विकृत समस्याएँ देखते हैं, उन्हें हल करते हैं । भूले-भटके जन-मानस को सही दिशा देते हैं ।
महाश्रमण महावीर को केवलज्ञान हो गया । संसार परिभ्रमण का मूल कारण मोह कर्म एवं अन्य ज्ञानावरण, दर्शनावरण एवं अन्तराय इन चार
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