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वाले लोग पेटू होते हैं, जो अति की निन्दा का सूचक है । कुछ लोग इतने वृकोदर एवं भुक्खड होते हैं कि भोजन के लिए आसन लगाकर बैठ जाते हैं तो जब तक चौके की पूरी सफाई न कर दें, उठने का नाम नहीं लेते । अधिक भोजन के बाद कितनी परेशानी होती है | डकार पर डकार और उबासी पर उबासी आती हैं । पेट फूल जाता है | ठीक तरह बैठा नहीं जाता । चला नहीं जाता, गैस का प्रकोप हो जाता है । कर्म करने की शक्ति क्षीण हो जाती है | कितनी दुःस्थिति हो जाती है जीवन की । अत्याहारी शिष्ट समाज में बैठने योग्य नहीं रहते । पहले अधिक खा लेना और फिर पाचन के लिए ऊपर से चूर्ण फाँकना, क्या अर्थ रखता है ?
देखा है, कुछ लोग शर्त लगाकर खाते हैं कि कौन कितना अधिक खा सकता है | विचित्र बात है | शर्त लगाकर चार चार पाँच पाँच सेर मिठाइयाँ खा जाने वाले लोगों की आश्चर्यजनक कहानियाँ सुनने में आई हैं । खेद है, इस प्रकार अधिकाधिक भोज्य पदार्थों का संहार करके देश में दुष्काल की स्थिति पैदा करने वाले ये बह्वांशी अपने इस कीर्तिमान पर गर्व का अनुभव करते हैं, यथाप्रसंग इधर-उधर अपने बहुभोजन की डींग मारते फिरते हैं। इन्हें पता नहीं, कि अधिक भोजन पुण्य का नहीं, पाप का परिणाम है | गीता ज्ञान के महान गायक श्रीकृष्ण ने महाशन ( अधिक खाने वाले ) लोगों को 'महापाप्मा' कहा है। जैनाचार्य इसे पशुयोनि से आए हुए प्राणी का लक्षण बताते हैं | इसका अर्थ है आहार संज्ञा का आधिक्य पशुत्व है । इसके विपरीत अल्पाहार उच्चकोटि की मानवता का शुभ चिह्न है । जैन इतिहास की गाथाएँ कहती हैं कि प्राचीन काल के आदि मानव ( जिन्हें भोगभूमि के यौगलिक मानव कहा है ) अतीव अल्पाहारी होते थे । अल्प भोजन से ही उनकी पूर्ण तृप्ति हो जाती थी । फलत: वे देवोपम मानव माने गए हैं | अधिक आहार राक्षस एवं दैत्य भाव का द्योतक है, और अल्पाहार देवत्व का ।
अल्पाहार : बीच की कड़ी
श्रमण परम्परा के महान अनुशास्ता भगवान महावीर ने अल्पाहार को बहुत अधिक महत्त्व दिया है | अल्पाहार, अत्याहार और अनाहार के बीच की कड़ी है, जो साधना और जीवन यात्रा के बीच उल्लेखनीय सामंजस्य स्थापित करता है | सर्वथा और सर्वदा निराहार रहने से जीवन यात्रा नहीं चल सकती
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