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जो व्यक्ति स्त्री, पुरुष, पशु, पक्षी तथा अन्य जंगम - त्रस प्राणियों को जल में डुबो कर, अग्नि में जलाकर धूम आदि में दम घोट कर, मस्तक पर मुद्गर आदि का मारक प्रहार कर, घात लगाकर किसी प्राणी को मारता है और फिर अट्टहास करता है, वह तीव्रतम महामोह - कर्म का बन्ध करता है ।
जो व्यक्ति अपने द्वारा कृत-कपट क्रिया को, किसी प्राणी-घात आदि के दुष्कर्म को गूढ कपट - जाल से छिपाता है तथा अपने दोषों को दूसरों पर मढ़ता है, सत्य - सिद्धान्तवाद का अपलाप करता है, वह महामोह - कर्म का तीव्र बन्ध करता है ।
जो व्यक्ति प्रवंचना आदि के द्वारा अपने स्वामी के धन आदि का अपहरण करता है, विश्वासघात आदि के द्वारा अपने विश्वस्त पद का दुरुपयोग करता है, वह महामोह कर्म का बन्ध करता है ।
जो व्यक्ति कुमार न होकर भी अपने को कुमार बताता है, अब्रह्मचारी होते हुए भी अपने को ब्रह्मचारी ख्यापित करता है, तथा कामान्ध होकर हर तरफ रूपवती स्त्रियों के प्रति आसक्ति रखता है, वह भी महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।
जो व्यक्ति राष्ट्र-नायक की, नगर-निगम के प्रमुख की जनता के पथ-प्रदर्शक की, अनेक जनों के उपकारी महायशस्वी श्रेष्ठ जन आदि की हत्या करता है, वह महामोह -कर्म का बन्ध करता है ।
जो वीतराग विकार विजयी, जिनेश्वर देवों का, श्रुत-ज्ञानी जनों का तथा जिनसे बोध प्राप्त किया है, उन्हीं की निन्दा करता है, तथा सम्यक् प्रकार से उनकी सेवा नहीं करता है, उनका सम्मान नहीं करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है
जो बहुश्रुत - ज्ञानी नहीं है, उत्कृष्ट तपस्वी नहीं है, फिर भी अपने को तद्रूप प्रख्यापित करता है, वह महामोह का बन्ध करता है ।
जो रोगी, वृद्ध तथा उपकारी-जनों की समय पर सशक्त होने पर भी
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