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- गलिताश्व ( दुष्ट या दुर्बल घोड़ा ) जैसे बार बार चाबुक की मार खाता है, ऐसे बार-बार किसी के कुछ कहते रहने और सुनने की आदत मत डालो |
ना पुट्ठो वागरे किं चि पुट्ठो वा नालियं वए । -उत्तरा. १,१४ - बिना पूछे दूसरों के बीच में नहीं बोलना चाहिए और पूछने पर भी मिथ्या भाषण नहीं करना चाहिए, मिथ्या परामर्श नहीं देना चाहिए । न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं, न निरट्ठे न मम्मयं । • पाप मूलक निरर्थक कर्म-भेदक वचन न बोले । कोहं असच्च कुवेज्जा, धारेज्जा पियमप्पियं
उत्तरा १, २५
- उत्तरा. १, १४
- क्रोध का प्रसंग होने पर भी क्रोध न करे । प्रिय या अप्रिय सभी प्रसंगों को समभाव से सहन करना ही उचित है ।
अप्पा चैव दमेयव्वो ।
- उत्तरा १, १५
- दूसरों की प्रताड़ना से शासित अर्थात् नियंत्रित होने की अपेक्षा व्यक्ति को स्वयं ही स्वयं पर नियंत्रण रखना चाहिए ।
न जुंजे ऊरुणा ऊरुं ।
- महत्तरों के साथ बहुत अधिक सटकर नहीं बैठना चाहिए । स नो डिस्सु ।
- उत्तरा १,१८ पर बैठे हुए ही
गुरुजनों के द्वारा आवाज देने पर अपने आसन उत्तर नहीं देना चाहिए । अर्थात् तत्काल खड़े होकर यथोचित उत्तर देना ही विनयाचार है ।
उत्तरा. १, १९
चाहिए |
चाहिए |
पाए पसारिए वावि ।
- गुरुजनों की ओर पैर पसार कर बैठना नहीं चाहिए । आयरिएहिं वाहिन्तो, तुसिणीओ न कयाई वि । - उत्तरा १, २० - गुरुजनों के बुलाने पर उपेक्षा भाव से मौन अथवा चुप नहीं रहना
आसण- गओ न पुच्छेज्जा, पुच्छेज्जा पंजलि उड़ो । -- उत्तरा १,२१ - गुरुजनों से यदि कभी कुछ पूछना हो, तो आसन पर बैठे हुए ही नहीं पूछना चाहिए, अपितु हाथ जोड़कर खड़े होकर अपनी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त
करना चाहिए |
- उत्तरा १, १८
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काले कालं समायरे ।
समय पर समय का अर्थात् समयोचित कर्तव्य का आचरण करना
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उत्तरा . १, ३१
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