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प्रश्न है, तुम्हें क्या होना है ? जीवन-संग्राम की उक्त परीक्षा में तुम्हें वीर बनना है या कायर | कुछ भी हो पुरातनता के प्रति सर्वथा और सर्वदा के लिए समर्पित हो जाना कायरता है, और कायर कभी भी जीवन संग्राम में विजेता नहीं हो सकता । किसी भी रूप में नव-निर्माण की जीवन्त प्रक्रिया में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । जीवन का वर्तमान क्षण ही वस्तुत: जीवन्त होकर भविष्य के समुज्ज्वल क्षणों के प्रति शुभाशंसा एवं शुभाशा का जीवन्त संदेश देता
संसार में अन्य भी अनेक प्राणी हैं । पशु पक्षी, जलचर, स्थलचर, खेचर आदि | उनके समक्ष इस प्रकार से मानवीय जीवन के जैसे उदात्त लक्ष्य न कभी रहे हैं और न कभी रहेंगे । उनका वर्तमान बहुत छोटा-सा है । केवल देह की सीमा तक ही उनकी चिन्तन-यात्रा है | इससे आगे उनके जीवन में समाज, राष्ट्र आदि के कोई भी स्वर्णिम स्वप्न नहीं हैं । परन्तु तुम तो मनुष्य हो, मनुज हो । मनुज अर्थात् चिन्तन के पुत्र । अत: तुम्हारा चिन्तन नित्य-निरन्तर समुज्ज्वल रहना चाहिए । उस पर अतीत की गंदी धूल पड़ी रहे, यह कोई अच्छी बात नहीं है | धूलि-धूसरित चिंतन बाहर की आँखों को ही नहीं, अन्तर की आँखों को भी वर्तमान और भविष्य का सही दर्शन नहीं करा सकता । जब पथ ही ठीक तरह से नहीं दिखाई दे, तब यात्रा का क्या अर्थ रह जाता है ? लक्ष्य की ओर गति स्वच्छ चिन्तन के प्रकाश में ही हो सकती है । और, आप जानते हैं, गति ही जीवन है, स्थिति ही मृत्यु है । गतिहीन होकर स्थिर हुए कि मरे, मृत हो गए।
एक रूपक है । पथ पर यात्रियों की सघन भीड़ बल रही है । कुछ लोग आपके आगे हैं, तो कुछ पीछे । आपके आगे के ल । खड़े हो जाएँ या मरे-मरे सुस्त कदमों से चलें, तो क्या होता है ? पीछे के लोगों का धक्का आपको लगता है । और, आप आगे के खड़े और सुस्त कदम के लोगों को धक्का देते हुए कहते हैं, ' अरे यार ! या तो आगे बढ़ो या एक ओर खड़े हो जाओ । हमें आगे बढ़ने दोगे, कि नहीं । ' ऐसा होता है न ? खड़े नहीं रह सकते, या तो आगे बढ़ें या एक ओर खड़े हो जाएँ । यात्रा पथ के बीच में खड़ा नहीं हुआ जा सकता है । जो खड़े रहने का प्रयत्न करते हैं, वे मूर्ख हैं । उन्हें दूसरे साथी अन्तत: पथ से अलग एक किनारे की ओर धकेल ही देंगे । धक्के खाना ही
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