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________________ "न त्वहं कामये राज्यं, न स्वर्ग, ना पुनर्भवम् । कामये दुःखतप्तानां, प्राणिनामार्ति नाशनम् ॥" भावार्थ है - न मुझे राज्य चाहिए, न स्वर्ग, न मोक्ष । मैं केवल प्राणियों की पीडा को दूर करने की ही कामना करता हूँ। धर्म पुत्र युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ है । उसमें अर्ध स्वर्ण कान्तिवाला शरीर लिए एक नकुल आता है । वह शरीर की इस स्वर्ण कान्ति का रहस्य निर्दिष्ट करता है - "अकाल के कारण कई दिनों के भूखे एक ब्राह्मण परिवार को कुछ भोजन मिलता है और वह समग्र परिवार करुणा से द्रवित होकर अन्य क्षुधाक्रान्त लोगों को वह अपना समग्र भोजन सहर्ष अर्पित कर देते हैं। उस पुण्य गृह में भ्रमण करने से ही मेरा यह नीचे का अर्घ शरीर स्वर्णकान्ति से युक्त हुआ है।" संक्षेपत: उल्लिखित उक्त कथा का सार यही है कि अभाव ग्रस्तों की प्राण-पण से सेवा करना ही महान पुण्य है और महान धर्म है । साधना के पथ पर निरन्तर अग्रसर रहने वाले सन्तों ने कहा है कि भूख से अधिक भयंकर दूसरी कोई पीड़ा नहीं है । जैनाचार्यों की वाणी है - "खुहासमा वेयणा नत्थि।” सन्त कबीर ने भी क्षुधा को भजन में भंग डालने वाली कुत्तिया बताया “कबीरा खुदाह कूकरी, करत भजन में भंग" साक्षियों की कोई सीमा नहीं है। सबसे महान एवं प्रामाणिक साक्षी तो क्षुधा के सम्बन्ध में मनुष्य की अपनी अनुभूति ही है। अत: आवश्यक है कि हम वर्तमान में बाढ़ तथा सूखा-ग्रस्त अपने बन्धुओं की वेदना को समझें और उसके निवारण के लिए अपनी पूरी निष्ठा के साथ अपनी जन-धन की शक्ति का सदुपयोग करें, ताकि भविष्य का इतिहासकार यह न रेखांकित कर सके कि परमोत्कृष्ट उदात्त भारतीय-संस्कृति के उत्तराधिकारी भारतवासी जन अपने क्षुद्र स्वार्थों में ही लिप्त रहे, अपने संकट-ग्रस्त बन्धुजनों के हितार्थ कुछ भी नहीं कर सके । सावधान ! समय पर कर्तव्य-हीनता एक महान पाप है, एक भयंकर मृत्यु है । प्राचीन काल से यशस्वी नों का यों ही प्रमादवश तथा स्वार्थान्धता के कारण अयशस्वी हो जाना, मृत्यु से भी बढ़ कर है | श्री कृष्ण ठीक ही कहते हैं| (४७२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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