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समवसरण में, प्रवचन सभा में बहनों को-भले ही वे साध्वी भी क्यों न हो, पुरुषों के समान बैठने का अधिकार नहीं है । वे सभा में खड़ी ही रहेंगी ।
औपपातिक सूत्र में यह उल्लेख विद्यमान है । और भी अनेक बातें हैं, जिनकी सीमाओं का हमने उल्लंघन किया है । एक ओर आप जिसे भगवद्-वाणी कहते हैं
और साथ-ही-साथ उसका उल्लंघन भी कर रहे हैं । क्योंकि आप में साहस का अभाव है । मेरे अन्तर्मन में सत्साहस है सत्य को सत्य के रूप में उद्घोषित करने का । मैं समयोचित जन-मंगल से शून्य मात्र शब्दों को भगवद्-वाणी नहीं कहता | कितनी भगवद्वाणी है और कितनी भगवद्-वाणी के नाम पर पीछे से आचार्यों द्वारा जोड़ी गई वाणी है-इसका निर्णय प्रज्ञा से करना होगा । हमें मृत परम्पराओं की सीमाओं को, रूढ़ियों को तोड़ना ही होगा ।
जो आगे बढ़ते नहीं, वे कभी विकास नहीं कर सकते । दुनिया में कोई भी व्यक्ति, कोई भी समाज एवं कोई भी राष्ट्र ऐसा नहीं है, जो सदा एक ही स्थिति में स्थित रहा हो । या तो वह पीछे हटेगा या आगे बढ़ेगा । इसके सिवा तीसरा कोई रास्ता नहीं है । मैंने राजस्थान की विहार-यात्रा में कुछ बच्चों को एकतारा बजाते और गीत गाते हुए देखा ।
मैंने उनसे पूछा-"तुम कौन हो ।” उन्होंने कहा-हम भर्तरी हैं । तुम क्या काम करते हो । उत्तर या उनका कि गा-बजाकर भीख माँगते हैं ।
मुझे आश्चर्य हुआ कि भर्तृहरि जैसा महान गुरु, महान विरक्त पुरुष, जिसके नीति-शतक, वैराग्य-शतक आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं, जिसकी परम्परा महान गौरवशाली रही है, उसी के शिष्य, वंशज आज भीख माँग रहे हैं।
___ कणप्पा ( कृष्णपाद ) जैसे सिद्ध योगी-चोरासी सिद्धों में से एक महान योगी । उसका तो यह एक खेल था कि सांप उसके शरीर पर इधर-उधर पड़े हैं, घूम-फिर रहे हैं । शिव की तरह सांप उसके आभूषण थे । विषधरों को शरीर पर धारण कर के भी वह निर्विष था । आज उसी सिद्ध योगी के चेले सपेरे सांपों को पकड़ कर उनका खेल दिखाकर आजीविका चला रहे हैं, इधर उधर भीख मांगते फिरते हैं । क्या का, क्या हो गया यह | जब अपने गरिमामय
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