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________________ अपना स्वर्णिम अस्तित्व ही दिखाई नहीं दे रहा है । अपनी जन्म भूमि स्वर्गादपि गरियसि है अर्थात् स्वर्ग से भी बढ़कर है- यह चिरंतन दिव्य वचन उन्हें सुनाई नहीं दे रहा है । मातृभूमि श्री माँ है । कौन ऐसा है, जो अपनी माँ को खण्ड-खण्ड करना चाहेगा, जिसके अंक में सुपोषित होकर जिसे अपने अस्तित्व का जीवन दान मिला है । इतिहास साक्षी है, जब कभी इस प्रकार विखण्डित होने का कुछ लोगों ने स्वप्न देखा, तो उनका सुख, उनकी शान्ति, उनकी स्वतन्त्रता सर्वथा मिथ्या स्वप्न होकर रह गई । पाकिस्तान का उदाहरण ही हमारे समक्ष है । विदेशी षड्यन्त्र के कारण धर्म और जातीयता के अन्ध दुराग्रह में उलझ कर भारत माँ के ही सुपुत्रों द्वारा भारत माँ को खण्डित करके पाकिस्तान बनाने का अविचारित कर्म कर लिया गया । और, आप देख रहे हैं पाकिस्तान की जनता सैनिक शासन के कठोर एवं भीषण चक्र में आज भी पिस रही है | प्रजातन्त्र के लिए आन्दोलन चल रहे हैं एक ओर, तो दूसरी ओर उसके दमन के लिए निर्दोष प्रजा का खून बहाया जा रहा है । क्या यही सब-कुछ पाने के लिए हमारे कुछ विचार मूढ बन्धु, भारत से अलग होना चाहते हैं | वे किसी भी नाम से अलग हों, उसका क्या दुष्परिणाम हो सकता है, यह पाकिस्तान के रूप में प्रत्यक्षत: देख सकते हैं। मैं अधिक कुछ नहीं लिखना चाहता । मेरा केवल एक ही उद्बोधन एवं निवेदन है कि कुछ भी हो, कैसी भी स्थिति हो, हम सब भारत माँ के सुपुत्र हैं, हम सब में एक ही माँ का रक्त है । अत: हम किसी भी सूरत में विखण्डित नहीं होंगे | एक रहे हैं और एक रहेंगे | मातृभूमि भारत के महान गौरव की रक्षा का दायित्व हम सब का है । अत: उस गौरव की हम सब मिलकर प्राण-प्रण से रक्षा करेंगे | हमारा महान जीवन मन्त्र है- “ संगच्छध्वं, संवदध्वं" कदम से कदम मिलाकर एक साथ चलें, और एक वाणी बोलें । जीवन की प्रिय मधुशाला में, मधु- रस की कुछ कमी नहीं हैं । पीओ और पिलाओ जी भर, लघु मन करना ठीक नहीं है । (४२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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