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________________ और शूरवीर हो, किन्तु जिस कुल में तू पैदा हुआ है, उसमें हाथी नहीं मारे जाते हैं । मारना तो दूर, हाथी के पास जाने तक का भी साहस नहीं होता है शूरोऽसि कृतविद्योऽसि दर्शनियोसि पुत्रक । " यस्मिन कुले त्वमुत्पन्नो गजस्तत्र न हन्यते ॥ 16 उक्त कथासूत्र की नजरों से देखा जाए, तो मानवजाति में भी कितने ही ऐसे शृगाल - शिशु हैं, जिन्हे अपनी योग्यता, शक्ति, बल और बुद्धि आदि का कुछ भी परिबोध नहीं है । वे अपनी सीमाओं से व्यर्थ ही आगे बढ़ते हैं, और अपने को सर्वनाश के गर्त में डाल देते हैं । भारत के मनीषियों ने तथाकथित अहंकार ग्रस्त में डाल देते हैं । भारत के मनीषियों ने तथाकथित अहंकार ग्रस्त मानव को सावधान करते हुए सूचित किया था- मानव तुझे निरन्तर विचार करते रहना चाहिए कि मैं कौन हूँ और मेरी क्या शक्ति है - कश्चाहं काच मे शक्तिरीति चिन्तिम् मुहुर्महुः ।" " यदि हम अपने महान पूर्वजों की शिक्षाओं पर उचित रूप से ध्यान दें, तो आज के पारिवारिक एवं सामाजिक द्वन्द्व काफी हद तक समाप्त हो सकते हैं । त्यागी - वर्ग में एक-दूसरे के प्रति आदर भाव एवं सद्भाव स्थापित हो सकता है । व्यक्तिगत तथा साम्प्रदायिक कलुषित मनोवृत्ति धुलकर साफ हो सकती है । जो भी, जहाँ भी, जिस किसी भी रूप में द्वन्द्व, संघर्ष, कलह एवं विग्रह हैं, वे सब ठीक तरह से अपने को परखने - तौलने के अभाव से हैं । अतः अपने को एकान्त क्षणों में कार्य क्षेत्र में उतरने से पहले यथार्थता की तुला पर ठीक तरह तौल लेना चाहिए । सितम्बर १९८६ Jain Education International (४११) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001307
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size12 MB
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