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कितने महान उदात्त एवं सर्व मंगल विचार हैं, परन्तु अभी इतनी दिव्य-शक्ति नहीं है, तो कम-से-कम गो-रक्षा से तो भूतदया की यात्रा प्रारम्भ होनी ही चाहिए | मैं सभी प्राणियों के कल्याणमंगल की कामना करता हूँ । एक की अहिंसा और दूसरे की हिंसा में मेरा विश्वास नहीं है । फिर भी साधारण मानव के प्रयत्न की एवं शक्ति की एक सीमा है । हमें ईमानदारी से उस सीमित शक्ति का प्रयत्न एवं उपयोग तो करना ही चाहिए । प्राप्त शक्ति का समयोचित शुद्ध प्रयोग न करना भी अधर्म की कोटि में आता है ।
मैं आशा करता हूँ, प्रबुद्ध अहिंसावादी महानुभाव प्रस्तुत चिन्तन पर अवश्य ही मुक्त मन से विचार करेंगे और अपने सीमित दायरों में से निकल कर मुक्त मन से अहिंसा के उपयोगी व्यापक क्षेत्र में अपना समुचित योग-दान देंगे ।
मई १९८६
(३८२)
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