________________
अत: मानव को आज अपनी शक्ति को समझने की अपेक्षा है । अन्तर्ज्योति को जगाना है । याद रखिए धर्म धर्म है, भले ही उसकी आराधना आज कलिकाल में करें, तब भी वह कषायों को शान्त-उपशान्त ही करेगा और उसके परिणाम स्वरूप कर्म-मल क्षीण ही होगा | धर्म से स्वर्ग का भौतिक सुख नहीं, आत्म-शान्ति ही मिलेगी । अतः अपने आपको देवों की गुलामी से, भौतिक प्रलोभनों से ऊपर उठाकर निष्काम-भाव से साधना में लगाएँ । श्रमण भगवान महावीर की वाणी को आत्मसात करें | परम आनन्द की अनुभूति होगी ।
अप्रैल १९८६
(३७६)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org