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है । धर्म तो मानव ही नहीं, प्राणी मात्र से प्रेम करना, मित्र जैसा व्यवहार करना, सबको अपनी आत्मा के समान देखना ही सिखाता है ।
धर्म सम्प्रदायें काल के प्रवाह में एक तरह की जातियाँ बन गई हैं । जैसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र-ये जातियाँ हैं और इनमें भी अनेक उपजातियाँ हैं। और, उन्होंने अमुक जाति को ऊँच और अमुक को नीच जाति मानकर छूत-अछूत मान लिया है । वैसे ही साम्प्रदायिक क्षुद्र मनोवृत्ति के कुछ धर्म गुरुओं ने भी सम्प्रदाय को जाति का रूप दे दिया है । और, अपनी सम्प्रदाय के अतिरिक्त दूसरी सम्प्रदायों को अपने से निम्न तर श्रेणी का मानते हैं | परन्तु, धर्म में यह भेद की दीवारें नहीं हैं। सच्चा धार्मिक साधक इन सबसे ऊपर होता है । सच्चा धार्मिक तो गणधर गौतम है । भगवान महावीर के पचास हजार श्रमण-श्रमणियों का प्रमुख गणधर है, गण का नायक है। श्रमण भगवान महावीर के बाद उसका दूसरा नम्बर है । लेकिन, भगवान महावीर से उसे ज्ञात होता है कि मेरा बाल मित्र स्कन्दक संन्यासी समवसरण में आ रहा है । उसके आगमन की बात मुनकर गौतम अपने आसन से उठकर स्कन्दक संन्यासी के स्वागतार्य चला जाता है । जबकि वह अन्य तीर्थ का संन्यासी है । मिथ्या-दृष्टि है। उसका विचार और आचार दोनों अर्हत् परम्परा से सर्वथा भिन्न है | इस ओर ध्यान नहीं दिया गौतम ने | किन्तु वह तो द्वार पर आ रहे अतिथि का स्वागत करने चल पड़ा और स्नेह भरे शब्दों में कहता है - "सागयं खंद्या सुसागयं खंद्या, अनुरागयं खंद्या ।" हे स्कन्दक ! मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ, सुस्वागत करता हूँ। तुम्हारा आगमन आनन्ददायक है । कितना उदात्त जीवन है, गणधर गौतम का । यह सब आज भी भगवती सूत्र में उपलब्ध है ।
किन्तु खेद है, कि आज एक ही परम्परा के महावीर के अनुयायी साधु-साध्वी एक-दूसरे साधु-साध्वी के आने पर आसन से उठ नहीं सकते, उनको आदर-सम्मान दे नहीं सकते, एक साथ मिलकर बैठ नहीं सकते, एक साथ आहार-पानी नहीं कर सकते, यहाँ तक कि एक-दूसरे को सुख-साता नहीं पूछ भी सकते । यदि अपनी सम्प्रदाय से भिन्न सम्प्रदाय के साधु-साध्वी को सुख-साता पूछ ली, तो इनका धर्म नष्ट हो जाता है । यह सब पागलपन है । वे स्वयं मूढ़ हैं
और दूसरों को मूर्ख बना रहे हैं । महावीर का दिव्य धर्म आज पंथों के घेरे में बन्द हो गया है । धर्म तो वह है, जिसमें अपने-पराए के भेद की कोई रेखा नहीं है । ज्योतिर्मय धर्म की ऊँचाई पर गौतम थे | इस प्रकार सुविशुद्ध धर्म के
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