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तरुण हर क्षण हँसता है, मुस्कराता है । साक्षात् मौत के दानव यमराज को देखकर भी उसके मुख पर हँसी फूट पड़ती है । कौन है इस धरती पर, आकाश पर जो उसे रुला दे, आँखों से दो बूँद आँसू बहाने को मजबूर कर दे । तरुण न कभी रोता है, न कभी किसी को रुलाता है । उस का काम है एक मात्र हँसना - हँसाना, सुख में भी, दुख में भी, जीवन में भी मरण में भी ।
तरुण वह जिसकी दृष्टि विशाल हो, व्यापक हो । जो अपने व्यक्तिगत वर्तमान और भविष्य को ही नहीं, अपितु अपने समाज, अपने राष्ट्र, अपने धर्म एवं अपनी संस्कृति के वर्तमान और भविष्य को भी ठीक तरह देख सकता हो । जो अपने सुख-दु:ख की आवाज नहीं, दूसरों के सुख-दुःख की आवाज सुनता है, और उसके लिए जूझने को, मर मिटने को तैयार रहता है हर क्षण, वही वस्तुत: तरुण है, युवक है । यौवन इसी का नाम है । जवानी इसी को कहते हैं । शक्ति ही नहीं, समय पर शक्ति की स्फूर्ति भी अपेक्षित है, तरंगित यौवन को ।
मन में करुणा की गंगा बहे, वाणी में सुरभित वचनों के फूल झरें, और हाथ पैरों में कर्म का वज्र निर्घोष हो, तो कहना चाहिए, वह युवा है । युवा शक्ति ही नरक को स्वर्ग में बदल सकती है, कांटों को फूलों का रूप दे सकती है। युवक की हर बात निराली, हर काम अनोखा । जो भी है, सब लाजवाब ।
तरुण का ज्योतिर्मय चिन्तन सत्य को अन्ध विश्वासों की कारा से मुक्त करता है | तरुण-चेतना अतीत के खूँटे से नहीं बँध सकती । वह अतीत को खूब दबाकर छूती है, मलती है, मसलती है, और जो उसका प्राणवान रस है, उसे पी लेती है, रसहीन निरुपयोगी खलभाग को जोर से थूक देती है । तरुण - चेतना जड़ स्थितिशील नहीं, अपितु सजीव गतिशील होती है । निरन्तर उज्ज्वल भविष्य की ओर उन्मुख गतिशीलता ही वस्तुतः तरुणाई है ।
खतरों से बचकर चलने वाला नहीं, खतरों से आगे बढ़ कर खेलने वाला ही तरुण होता है, तरुण की मनोवृत्ति खिलंडी मनोवृत्ति हर काम हँसते-खेलते । कैसा ही दुःसम्भव या असम्भव काम हो, तरुण का जोशोखरोश कभी ठंडा नहीं पड़ता । जितनी अधिक कठिनाई, उतनी ही अधिक तरुण की स्फूर्ति, दीप्ति । वह खरे सोने के समान हर चोट पर अधिकाधिक चमकता जाता है । असंभवता, निराशा, खिन्नता, उदासीनता जैसे निर्माल्य शब्द तरुण के
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