________________
रूप में ही देता था । इसी संदर्भ में महाकवि कालिदास ने कभी कहा था -
“प्रत्युक्तं हि प्रणमिषु सतामीप्सितार्थ क्रियैव।"
अपने स्नेही जनों की इच्छित कामना का पूरा किया जाना ही सज्जनों का उत्तर होता है ।
- हृदय वेदना से भर जाता है कि आज ये सब बातें कहाँ हवा हो गई। आज कर्म पर नहीं, वाणी पर बल दिया जाता है । भगवान् महावीर के शब्दों में आज का आदमी खाली गर्जने वाला मेघ है, वर्षने वाला नहीं । श्रेष्ठ मेघ वह है जो गरजता नहीं, बरसता है । मध्यममेघ भी अच्छा है जो जोर से गरजता है तो जोर से बरसता भी है । पर आज समस्या तो उन मेघों की है, जो गरज-गरज कर कानों को बहरा बनाते जा रहे हैं, किन्तु निदाघ से तप्त प्यासी धरती के लिए पानी की एक बूंद भी नहीं टपकाते ।
आज के राजनीतिक एवं धार्मिक आन्दोलन एक भीषण वात्याचक्र में उलझ गए हैं | आज के कुछ धर्मगुरु, तो गुरु नहीं, सीधे भगवान ही बन गए हैं। और देशों का मुझे पता नहीं, भारत में तो भगवानों की भीड़ लग गई है । ये भगवान प्रवचन मंच पर से चीखते चिल्लाते आये दिन घोषणा करते हैं कि हम विश्व का कल्याण करेंगे । राज्यशासन से कुछ नहीं होगा। वह भौतिक है। अधर्म पर आधारित है | विज्ञान भी सर्वनाश का हेतु है । किसी से कुछ नहीं होगा । हम धर्म गुरु ही विश्व का कल्याण कर सकते हैं। हमारे मन में विश्व में फैलती जा रही हिंसा का, अनीति का असह्य दर्द है । और इस दर्द से कराहते हुए कुछ भगवान् तो विश्व कल्याण की घोर गर्जना के स्वर में विदेशों को भागे जा रहे हैं। भारत में उनकी नाक के नीचे कितने जघन्य अपराध हो रहे हैं । कितनी हत्या, लूटमार, शराबखोरी, व्यभिचार, तोड़फोड़, विग्रह, साम्प्रदायिक संघर्ष आदि की आये दिन हजारों पटनाएं हो रही हैं। ये सब हमारे पापाचार हमारे विश्वोद्धारक भगवानों को नहीं दिखाई देते, उन्हें दिखाई देते हैं, हजारों हजार मील दूर जापान, फ्रान्स, इंग्लैण्ड और अमरीका आदि के पापाचार| लगता है इन भगवानों की दूर की नजर तो ठीक है, पास की नजर ठीक नहीं है। दो-चार रटेरटाए घिसेपिटे लच्छेदार भाषणों से विश्व की कायापलट कर देने के स्वप्न देखनेवाले ये मसीहा जरा अपने गिरेबान में नजर डालकर देख लेते तो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org