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________________ प्रेरणा लेकर नए वर्ष में प्रवेश करो। रोते हुए नहीं, हँसते हुए आगे बढो । जो रोता है, उसे रोता हुआ भविष्य मिलता है; और जो हँसता है उसे हँसता हुआ । तुम्हारे सामने बहुत बडे दायित्व हैं। तुम्हे अपने व्यक्तिगत जीवन का ही नहीं, अपितु अपने परिवार, समाज, राष्ट्र और धर्म तथा सांस्कृतिक परम्परा का ध्यान रखना है । सर्वत्र नवनिर्माण, विकास और परिष्कार की पुकार है । तुम्हें इस पुकार को ठीक तरह सुनना है और उसके लिए अपने दायित्व का निर्धारित भाग अदा करना है । तुम्हें अगल-बगल, दाएँ-बाएँ, आगे-पीछे यह नहीं देखना है कि दूसरा कोई कुछ इस दिशा में कर रहा है या नहीं कर रहा है। दूसरा कोई करे या न करे; संकल्प करो, तुम्हें करना है, तुम्हें अकेले को करना है । यह मत सोचो कि मैं अकेला क्या कर पाऊँगा ? प्राचीन भारत के महामनीषी की यह अमरवाणी हर क्षण स्मृति में रखो 'एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति, न च ताराः सहस्रशः । हजारों-लाखों तारे नहीं, एक चन्द्र ही अन्धकार का नाश करता है। तुम चन्द्र हो, तारा नहीं । भारतीय दर्शन की भाषा में तुम नर नहीं, नारायण हो । प्रत्येक सत्कर्म की पूर्ति के लिए, जो कुछ भी तुम्हारे पास है, हँसते मन से उसकी आहुति दे दो। अच्छे और सच्चे मन से किया गया कोई भी प्रयत्न निष्फल नहीं होता। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो आने वाले दूसरे कल को वह सफल होगा ही । भूमि में पड़े बीज को अवसर मिलते ही अंकुरित होना है, पुष्पित फलित होना है। जीते रहो, जूझते रहो। विजय की पताका आगे और आगे बढ़ाते रहो । लोगों के कण्ठ अकुला रहे हैं, तुम्हारे नाम का जिन्दाबाद बोलने के लिए। ज्यों ही तुम्हारे हाथों संपादित एक भी सत्कर्म मंजिल पर पहुँचेगा कि हजारों हजारों कंठों से मुखरित होने वाले जिन्दाबाद के जयघोषों से गगन गूँजने लगेगा। क्या पता, तुमसे ऐसा कोई महान् कार्य हो जाय, जो तुम्हें इस वर्ष का इतिहासपुरुष ही बना दे। ऐसा इतिहासपुरुष, जो युग-युग तक जनजीवन के लिए प्रेरणा का उदाहरण बना रहे। आज तक के मानव - इतिहास में जो भी कोई महान् व्यक्ति हुए हैं, वे सब अपने किसी दिव्यकर्म के द्वारा ही इतिहासप्रसिद्धि की महिमा एवं गरिमा से मण्डित हुए हैं। आओ, आगे बढ़ो, नववर्ष तुम्हारे स्वागत के लिए प्रस्तुत है। शुभास्ते सन्तु पन्थानः ! जनवरी १९७५ Jain Education International (२७) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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