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क्यों, हो ही गई हैं। मैं उनके लिए हृदय से क्षमा प्रार्थी हूँ। फिर भी सत्य के लिए प्रबुद्ध पाठकों से मेरा नम्र निवेदन है कि वे व्यर्थ की कुछ कटूक्तियों की
ओर ध्यान न देकर शान्त-चित्त से लेख को पढ़ें और मनन करें | सिद्धान्त के नाम पर जनसमाज में कटुता का अनर्गल विष फैलाने वाली मान्यताओं के मायाजाल से खुद भी मुक्त हों और दूसरों को भी मुक्त करें ।
मैं जीवन के अस्सीवें वर्ष में यात्रा कर रहा हूँ | मेरे कुछ स्नेही संगी साथी कहते हैं, आप चुप होकर बैठिए | इस तरह के बेलाग लेखन से आपके श्रद्धालु भक्तों की संख्या कम होती जा रही है। मुझे भी मालूम है कम हो रही है । प्रशस्ति पत्र देने वाले इधर-उधर हो रहे हैं । परन्तु, सत्य का तकाजा है, मैं इस गिनती के फेर में न पहूँ, जहाँ तक हो सके निर्द्वन्द्व भाव से सत्य को उजागर करता रहूँ | 'सत्यमेव जयते, नाऽनृतम् ।'
अप्रैल १९८३
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