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________________ अन्ध मान्यता है, जिसकी पूर्ति कर मानव हर्षोन्मत्त हो नाचता है, और अपने को धन्य-धन्य समझता है । जीवन के अन्य क्षेत्र में यदि कोई हिंसा या हत्या हो जाती है, मांस आदि खाया जाता है, तो मानव हृदय को कभी ग्लानि भी होती है, कुछ बुरा भी महसूस किया जाता है, परन्तु उक्त धार्मिक मान्यताओं के रूप में जो हत्याएँ की जाती हैं, उनके लिए तो ग्लानि की अपेक्षा हर्ष ही अधिक अनुभव किया जाता है । आप देखते हैं, जो जितना बड़ा धनी आदमी होता है, वह उतनी ही अधिक संख्या में पशुओं की बलि देता है, कुर्बानी करता है और वह व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा बहुत बड़ा धार्मिक समझा जाता है । पुराने युग में तो नरबलि तक की मान्यताएँ प्रचलित थीं । शुन: शेप आदि की कथाएँ रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में आज भी पढ़ने में आती हैं । अब भी कभी-कभी समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि अमुक व्यक्ति ने देवी के समक्ष अपने अबोध पुत्र की तथा अन्य किसी के प्रिय बालक की हत्या कर दी | कुछ धर्मान्ध मूरों ने अपनी जीभ तक काटकर देवी को चढ़ा दी, इस आशा में कि देवी कटी हुई जीभ को पुन: जोड़ देगी। कुछ लोगों ने तो अपने सिर तक काट डाले हैं | रावण की कल्पित कथा- उनके सामने रही है न | रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए एक के बाद एक अपने दश मस्तक काट डाले थे, जो शिवजी के प्रभाव से बार-बार जुड़ जाते थे | कहाँ तक कहा जाए, लिखा जाए, अन्ध-विश्वासों की अँधेरी रातें, भ्रान्त मान्यताओं के कृष्ण-पक्ष में ही जन्म लेती हैं। . किसी एक नदी का जल पवित्र है, पापों को धो डालता है, तो दूसरी नदी का जल अपवित्र है वह मानव के पूर्व पुण्यों को नष्ट कर डालता है, और उसे जन्मजन्मान्तर के लिए अपवित्र बना देता है । गंगा और कर्मनाशा आदि नदी-जलों के सम्बन्ध में प्रचलित मान्यताएँ, इस बात की साक्षी हैं | भूमि को माता के रूप में अंकित किया था हमारे पूर्वजों ने | प्रात:काल शय्या से उठकर मानव जब भूमि पर पैर रखे, तो सर्व प्रथम पादस्पर्श के अविनय के लिए क्षमा-याचना करे माँ से कि “ पादस्पर्श क्षमस्व मे ।" आज भी बोलने के लिए तो सब-कुछ बोला जाता है, पर इसके मार्मिक मूल बोध का भाव कहाँ है ? पृथ्वी माता के राष्ट्र, प्रान्त आदि के नाम पर खण्ड-खण्ड कर दिए हैं और ये खण्ड एक-दूसरे की प्रजा का, अबोध बालकों से लेकर वृद्धों तक का, निरपराध महिलाओं तक का खून बहा रहे हैं । पृथ्वी माँ का हिमालय आदि भाग पवित्र (२४२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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