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________________ यह है मानवता ! मानव जाति में ऐसे उदाहरण तो लाखों ही नहीं, करोड़ों मिलेंगे, जिनमें अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के व्यामोह में मानव ने अपने प्राणों का बलिदान दिया है । अनादिकाल से मानव अपने क्षुद्र परिवार के लिए, यश-प्रतिष्ठा के लिए, धन-संपत्ति के अर्जन एवं रक्षण के लिए अपने प्रिय प्राणों को मृत्यु की आग में होमता आया है, साथ ही दूसरों के प्राणों का भी हनन करता रहा है । परन्तु, ऐसे विरले ही मानव मिलेंगे, जो दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए, कर्तव्य की वेदी पर अपने प्रिय प्राणों को निछावर करने के लिए साहस के साथ मौत के सामने आकर खड़े होते हैं, और प्रसंग आगे बढ़ता है, तो हँसते-हँसते अपना सर्वाधिक प्रिय जीवन निछावर कर भी देते हैं । ऐसे बलिदानी दधीचियों के उक्त दान में प्रतिदान की कहीं भी कोई गन्ध नहीं होती- न ऐश्वर्य की, न यश की और न इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में नाम अंकित कराने की । उन्हें तो अज्ञात एवं अपरिचित रहने में जितना आनन्द आता है, उतना ज्ञात एवं परिचित होने में नहीं आता, जय जयकार पाने में नहीं आता । सत्य युग की बात छोड़िए । वहाँ तो अनेक पौराणिक गाथाएँ ऐसी मिलती हैं, जो हमारे आज के तन-मन को रोमांचित कर देती हैं । आज का सब ओर से निन्दित कलि-युग भी ऐसी दिव्य ज्योतिर्मय किरणों से वंचित नहीं है । मानवता सत्य युग या कलि-युग आदि के काल-खण्डों में भी धूमिल नहीं होती है । सघन अंधकार के क्षणों में भी सहसा स्वर्णिम ज्योति किरणें प्रज्वलित हो जाती हैं, जिनके फल-स्वरूप मानवता जगमगा उठती है । मानव में दिव्यता के विश्वास का आधार इन्हीं घटनाओं पर खड़ा है, जो युग-युगान्तर तक मानव जाति के सुप्त एवं मूर्च्छित होते हुए परोपकार-प्रवण, करुणार्द्र मन को जगाए रखता है । 'अमर उजाला' दैनिक, आगरा ( १२ अप्रैल १९८१) का एक पृष्ठ (२१४) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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