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________________ पूर्वाग्रह-मुक्त चिन्तन ही सत्य चिन्तन है चिन्तन का सबसे पहला स्वर्णसूत्र है-पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर सत्यानुलक्षी तटस्थ दृष्टि से सोचना, समझना, विचारना । सत्य के दर्शन पूर्वाग्रह से धूमिल एवं विकृत हुई दृष्टि से कथमपि संभव नहीं हैं । जिसकी आँखों में पीलिया का रोग हो जाता है, उसे सर्वथा श्वेत वस्तु भी पीले रंग की ही नजर आती है । अन्तर् चेतना की दृष्टि को भी पीलिया का रोग होता है । यह है बिना सोचे-समझे और विचार-मन्थन किए इधर-उधर से कुछ भी पकड लिए गए विकृत धारणाओं के बन्द घेरे में ही चेतना को केन्द्रित कर लेना | महावीर के दर्शन में इसे आभिग्रहिक मिथ्यात्व कहते हैं । इस दृष्टि के लोग अपने को बहुत बड़ा श्रद्धालु कहते हैं, सम्यक् दर्शनी कहते हैं । इनका दावा होता है कि विश्व का समग्र सत्य हमारी पूर्वगृहित मान्यताओं में ही है । इसके अतिरिक्त जो भी है, वह सब असत्य है, झूठ है, फरेब है। इन्हें अपने सिवा सर्वत्र पाखण्ड ही पाखण्ड दृष्टिगत होता है । सत्य के ये दावेदार सत्य के नहीं, असत्य के पक्षधर होते हैं । सत्य 'ही में नहीं, 'भी' में समाहित है । यह ही सत्य है, जो मैंने माना है, मैंने बताया है - यह 'ही' के मूल में छिपा अहंकार का विषधर सत्य की हत्या करता है ।'ही विवेकमूढ एकान्तवाद का पक्षधर है । यह 'ही' अनन्त सत्य को सान्त एवं असीम सत्य को ससीम बनाता है। सागर की एक बूंद सागर का अंश होने का दावा करे तो ठीक है, किन्तु यदि वह अपनेको समग्र सागर होने का उद्घोष करे, तो यह कितना हास्यास्पद वर्तन होगा, बूँद का | लगता है आज की कुछ क्षुद्र बूंदें किस जोशो-खरोश से अपने को सागर उद्घोषित कर रही हैं । कहावत है - एक क्षुद्र चूहे को इधर-उधर भटकते कहीं से झूठ का एक टुकडा मिल गया और वह अपने को पंसारी (औषधि आदि का विक्रेता) समझ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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