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मुश्किल हो जाता है । उसे सब ओर अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है । हर काम में असफल होते रहने की आशंका की नागन हरक्षण उसे डसती रहती है ।
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एक युवक सब ओर से निराश हो रहा था। दो चार काम किए, असफल हो गया, तो निराशा का कुहासा सघन हो गया । एक दिन उसे एक पुराना मित्र मिला । बात हुई तो उसने टोपी का काम शुरू करने के लिए परामर्श दिया । निराश मित्र ने लंबी सांस छोड़ते हुए कहा, आप ठीक कहते हैं । पर मेरा भाग्य तो ऐसा बदतर है कि ज्यों ही मैंने टोपी का काम शुरू किया नहीं कि भगवान विना शिर के आदमी पैदा करने लगेगा । शिर के विना टोपियाँ क्या काम आएँगी ? कौन खरीदेगा मेरी टोपियाँ ? " कितना दुर्बल मन हो जाता है निराश व्यक्ति का । विचित्र असंभव संभावनाओं के जाल में उलझ जाता है दुर्बल मन । भगवान की उससे क्या व्यक्तिगत दुश्मनी है, जो उसके विरोध में सृष्टि का रूप ही बदल देगा अगर वह जुराब या जूतों का काम करेगा तो विना पैर के आदमी पैदा करेगा । भोजनालय चलाएगा, तो विना पेट और मुँह के आदमी पैदा करने लगेगा । और यदि वर्तमान के लोगों के लिए ही टोपी या जुराब आदि का धंधा शुरू किया, तो कहीं ऐसा न हो कि रूठा हुआ भगवान उस एक को तंग करने के लिए सभी लोगों के शिर और पैर काट डाले । जरा विचार करो, भगवान को इस विनाश के कुचक्र से क्या लेना देना है । तुम्हारा अपना कर्म है, जिसे तुम जैसा भी चाहो, कर्म से ही इधर उधर कर सकते हो, बदल सकते हो । आपका भाग्य आपके हाथ में है, न कि आकाश के किसी ब्रह्मा, विष्णु, महेश या भगवान के हाथ में । भगवान तो प्रेरणा के देवता हैं |
उनसे या उनके स्मरण से तो जब होगा, भला ही होगा | बुरा करेंगे । भगवान भगवान ही होता है, शैतान नहीं होता
वह क्यों किसी का अतः अपने मन
न गिराओ । कैसी भी दुःखद स्थिति हो, उच्च संकल्पों के दीप बुझने न दो ।
बुझा हुआ मन पराजय का हेतु है और प्रज्वलित मन विजय का । कहा है
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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।'
मानव की स्थिति असाधारण है । जैसा कि हमारे पुराने ग्रन्थों में वर्णन है, ' मानवलोक के नीचे नरक है और स्वर्ग ऊपर ।' इसको भौगोलिक अर्थ में तो देखा ही गया है । मैं कहता हूँ, इसे भावना के अर्थ में भी देखने एवं समझने का प्रयत्न करो । आप की भावना अधोमुखी है, नीचे की ओर है, तो वह नरक है । और आप की भावना ऊर्ध्वमुखी है, ऊँचाई की ओर है, तो वह स्वर्ग है । इसीलिए अथर्व वेद ( ८.१.६ ) के एक ऋषि ने कहा है उद्यानं ते
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