________________
चाहिए कि बार-बार की जाने वाली दोषों की चर्चा को एक ओर छोड़कर अच्छाइयों को उदारता से स्वीकार किया जाए, उनकी प्रशंसा में प्रेम से दो पुष्प चढ़ाए जाएँ । और भविष्य में उन पुरानी गलतियों की पुनरावृत्ति न हो, इसकी पूर्ण सावधानी रखी जाए ।
किसी के दोषों को दुर्भाव से अधिक उछाल कर व्यक्तित्व हनन की चेष्टाएँ राष्ट्र के आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास में बाधक ही सिद्ध होती है । इससे बुराइयों को प्रश्रय मिलता है । हमारे भारत के महान मनीषियों, प्रकाण्ड पण्डितों एवं अनुभवियों ने इस बात के लिए आग्रह रखा है कि अच्छाइयों का, मैत्री का, प्रेम एवं सद्भावना का ही अधिक प्रचार किया जाए, गलतियों का नहीं, अपभ्राजना का नहीं । गलत बातों का अधिक प्रचार मानव मन की कमजोरियों को और अधिक बद्धमूल बना देता है । गन्दगी या कीचड़ के उछालने से, फैलाने से कभी पवित्रता, स्वच्छता नहीं आती ।
आज के राजनीतिज्ञों को, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों एवं तकनीकियों से प्रेरणा लेनी चाहिए। ये सब लोग सहज भाव पूर्व निर्माण के प्रति आस्थावान होते हैं । उनसे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते हैं । अतीत के निर्माण को प्रगति का रोड़ा नहीं समझते हैं, किन्तु और अधिक ऊपर जाने की दिशा में एक आधारभूत सीढ़ी मानते हैं । पूर्व निर्माण में रही हुई पिछली भूलों से शिक्षा लेते हैं, और पूरी शक्ति एवं निष्ठा के साथ यथावसर उनका परिमार्जन करते हैं, एतदर्थ सदा सावधान एवं सतर्क रहते हैं ।
।
कल्याणराज्य की स्थापना
भगवान महावीर एवं बुद्ध यही कहते हैं, मित्रता के व्यवहार से हम अपने प्रतिपक्षी विरोधियों को भी अपने अनुकूल मित्र बना सकते हैं । विश्वमैत्री की मंगल यात्रा अपने से प्रारम्भ की जानी चाहिए इस महापुरुषों के आदर्शों में ही निहित है । इन्हीं में प्रस्फुटित हुआ है । आरोप-प्रत्यारोपों के वात्याचक्र प्रस्फुटित हो सकता है |
"
1
जय जगत् का उद्घोष
में यह पवित्र उद्घोष कैसे
इस राष्ट्र के आन्तरिक प्रश्न का भी समय पर महापुरुषों के चिन्तन - प्रकाश में समाधान यदि दुर्भाग्यवश न खोजा गया, तो यह प्रकाशयुग अन्धकारयुग में भी बदल सकता है । सुवर्णयुग धूलधूसरित भी हो सकता है ।
(१४३)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org