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________________ न जायते म्रियते वा कदाचिन्, नाऽयं भूत्वा भविता वा न भूयः ।। अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणः, न हन्यते हन्यमाने शरीरे ! भगवद्गीता २/२० जैसा यहाँ प्रत्यक्ष में मनुष्य पुराने वस्त्रों का त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को ग्रहण कर लेता है, वैसे ही यह जीवात्मा भी यथा प्राप्त पुराने शरीर को त्याग कर दूसरे नए नए शरीरों को प्राप्त होता रहता है | वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि । तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ।। भ. गी. २/२२ हे अर्जुन, इस अविनाशी आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है । और न इसे जल गीला करके गला सकता है, और न वायु सुखा कर नष्ट कर सकती है । नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः न चैनं क्लेदयन्त्यापो, न शोषयति मारुत: ।। भ. गी. २/२३ जो सत् है वह कभी असत् नहीं होता । और जो असत् है, वह कभी सत् नहीं होता है । अर्थात् सत् सदा सत् है, असत् सदा असत् है । इस प्रकार सत्-असत् दोनों का ही अन्त (तत्त्व एवं यथार्थ रहस्य) तत्त्वदर्शी ज्ञानियों के द्वारा देखा गया है । नाऽसतो विद्यते भावों नाऽभावो विद्यते सतः उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः || भ. गी. २/१६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001306
Book TitleChintan ke Zarokhese Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherTansukhrai Daga Veerayatan
Publication Year1988
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size13 MB
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