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अपने पिता की मूँछे खींच लेता है, माता के मुख पर तमाचा मार देता है, लात भी मार देता है । इत्यादि भूलें साधारण नहीं असाधाराण हैं, यदि कोई समझदार वयस्क व्यक्ति करे, तो प्रतिकार स्वरूप उसे कठोर दण्ड भी मिल सकता है । परन्तु नादान शिशु के लिए ऐसा कुछ नहीं होता, क्योंकि वह अज्ञान है, उसे अपने कर्म के प्रति कुछ होश नहीं है । प्रारंभिक स्थिति में वह अपने को प्रेम से गोद में लेकर खेलने वाले व्यक्ति के बहुमूल्य स्वच्छ वस्त्रों को भी मल-मूत्र से गन्दा कर देता है । बताइए, क्या किया जाए उसका । क्षमा के ही योग्य है वह, दण्ड के नहीं । और क्षमा भी क्यों ? ये भूलें तो अज्ञानजन्य होने से भूल मानी ही नहीं जाती । भूल मानें, तभी तो क्षमा करने का प्रश्न आता है । यही स्थिति पागल की है । पागल की गालियों, अभद्र व्यवहारों पर कैसा रोष, कैसा क्षोभ । कुछ समझदार बड़े, बूढ़े, वयस्क तरुण भी अनजाने में ही भूलों के शिकार हो जाते हैं ।
दूसरा वर्ग क्षणिक उत्तेजनाओं का होता है । किसी विपरीत घटना एवं प्रसंग पर व्यक्ति को सहसा आवेश आ जाता है उत्तेजना के कारण भान भूल जाता है और जल्दी में कुछ का कुछ कर बैठता है । क्रोध आ जाता है, परिणाम स्वरूप गाली दे बैठता है, मारपीट भी कर सकता है । यह भूल नोट करने जैसी है। इसे अधिक मूल्य तो नहीं देना चाहिए, सामाजिक क्षेत्र में प्रायः दिया भी नहीं जाता है । फिर भी आध्यात्मिक क्षेत्र में जागृति आने पर, विवेक स्फुटित होने पर, साधक अपने अतीत में झाँकता है, और उत्तेजना जन्य क्षणिक भूलों का भी प्रायश्चित्त करता है । धूल का एक सूक्ष्म कण भी आँख में गिर जाए, तो उसे निकाला ही जाएगा । यही स्थिति समझदार वयस्क व्यक्तियों के अज्ञान जन्य भूलों के प्रति भी है । ज्यों ही साधक को यह पता लगे, कि वस्तुत: भूल हुई है, अज्ञानता के कारण भ्रमवश मैं उस समय कुछ समझा नहीं था, तो वह तत्काल अज्ञानजन्य भूलों का भी प्रायश्चित्त करता है । कितना करता है, यह प्रश्न नहीं है ? प्रश्न है, भूल को भूल मान लेने का, हार्दिक पश्चात्ताप के जागृत होने का ।
तीसरा वर्ग है, योजनाबद्ध की जाने वाली संकल्पित भूलों का । ये भूलें सीधे ही दण्ड के क्षेत्र में आ जाती हैं । इन्हें भूल कहना भी एक तरह से भूल है। यह अपराध का क्षेत्र होता है, सामाजिक दृष्टि से भी । हत्या, हानिकर, झूठ, धोखा, घृणा, वैर, जालसाजी, व्यभिचार, चोरी, देशद्रोह, अप्रामाणिकता, कर्तव्य का अपालन, अधिकार एवं सत्ता का दुरुपयोग, मर्यादा -हीन लोभ-लालच, पैशुन्य,
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