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और भुक्ति दोनों को पा लेता है । अपने इष्ट के प्रति अपने को पूर्णत: समर्पण करने पर साधक के मन में विकल्पों की तरंगें तरंगित नहीं होती । इसलिए निष्काम और निरपेक्षा से की जाने वाली साधना कभी भी निष्फल नहीं जाती । आप जानते हैं कि बीज तो एक ही होता है, और वह छोटा-सा ही होता है, परन्तु जब वह पौधे एवं वृक्ष का रूप ले लेता है, तो कितना विशाल हो जाता है और एक बीज हजारों हजार फल देता है । यदि समर्पण के बीज को ठीक तरह से बोया गया तो भुक्ति और मुक्ति अथवा भौतिक और आध्यात्मिक-दोनों सुख उपलब्ध हो जाएँगे। निष्कामभाव से की गई साधना, तप, जप, दान, दया, करुणा, क्षमा, सेवा आदि सत्कर्म कभी भी निष्फल नहीं जाते । आगम की भाषा में इस लोक और परलोक - स्वर्ग आदि में सुख साधनों, धन-वैभव, यश-प्रतिष्ठा पाने की आकांक्षा, अभिलाषा एवं कामना से रहित की गई साधना से, आत्म-चिन्तन से ही मुक्ति के द्वार खुलेंगे, अपने शुद्ध स्वरूप की प्राप्ति होगी ।
जून १९७६
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