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________________ | ४१२ चिंतन की मनोभूमि सड़कर चारों ओर मौत बाँटने के लिए प्रस्तुत हो जाती है। अन्ततोगत्वा जीवनदायी जल जीवन-घातक बन जाता है। वक्ष के साथ हजारों ही पत्ते रहते हैं. बडी-बडी शाखाएँ और छोटी-छोटी टहनियाँ लचक-लचककर वृक्ष की विराटता और महानता की शोभा बढ़ाती हैं। फल-फूल उसके सौन्दर्य को द्विगुणित करते रहते हैं। हरे-हरे असंख्य पत्तों से वृक्ष की काया लुभावनी लगती है। ये शाखाएँ, पत्ते, फल-फूल विराट वृक्ष के सौन्दर्य बनकर रहते हैं। इसमें वृक्ष की भी सुन्दरता है और उन सबकी भी सुन्दरता एवं शोभा है। फल है, तो फल बनकर रह रहा है, फूल है, तो फूल बनकर महक रहा है। यदि वे फल-फूल वृक्ष से अलग पड़ जाते हैं, टूट-टूटकर गिर जाते हैं ,तो उनका सौन्दर्य नष्ट हो जाता है, वे सूखकर समाप्त हो जाते हैं। वृक्ष के साथ उनका जो अस्तित्व और सौन्दर्य था, वह वृक्ष से टूटने पर विलुप्त हो जाता है। वस्तुतः जीवन में जो प्रेम, सद्भाव और सहयोग का रस है, वही व्यक्ति के अस्तित्व का मूल है, प्राण है। जब वह रस सूखने लग जाता है तो जीवन निष्प्राण-सा कंकाल बनकर रह जाता है। यह एक निश्चित तथ्य है कि जीवन की समस्याएँ व्यक्ति अकेला रहकर हल नहीं कर सकता, उसे समूह या संघ के साथ रहकर ही जीवन को सक्रिय और सजीव रखना होता है। संगठन गणित की एक इकाई है। आपने गणित का अभ्यास तो किया ही है। बताइये, एक का अंक ऊपर लिखकर उसके नीचे फिर एक का अंक लिख दिया गया हो, ऊपर नीचे एक-एक बैठा हो तो दोनों का योग करने पर क्या आएगा ?१ + १ = २ एक-एक . दो! दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने भी हैं, बहुत निकट भी हैं, किन्तु निकट होते हुए भी यदि उनके बीच में अन्तर है, उन्हें अलग-अलग रखने वाला एक चिह्न बीच में है, तो जब तक यह चिह्न है, तब तक संख्या-निर्धारण करते समय १+१ =२ दो ही कहे जायेंगे। जब यदि उनके बीच से चिह्न हटाकर उन्हें अगलबगल में पास-पास रख दिया जाए, तो एक और एक मिलकर ग्याहर हो जायेंगे। एक-एक ऊपर-नीचे दूर-दूर रहने पर दो से आगे नहीं बढ़ सकता, एक-एक ही रहता है। पर एक-एक यदि समान पंक्ति में, बिना कोई चिह्न बीच में लगाए, पासपास अंकित कर दिए गए, तो वे ग्यारह हो गए। ___जीवन में गणित का यह सिद्धान्त लागू कीजिए। परिवार हो, समाज हो, धर्मसंघ हो अथवा राष्ट्र हो, समस्याएँ सब जगह हैं। सर्वत्र मनुष्य में कुछ न कुछ मानवीय दुर्बलताएं रहती हैं। हम दुर्बलता को बढ़ावा नहीं देते हैं, उन्हें दूर करना चाहते हैं, समस्याओं का समाधान करना चाहते हैं। परन्तु समाधान कैसे हो? इसके लिए एक-दूसरे से घृणा अपेक्षित नहीं है, शोरगुल करने से या संगठन को विछिन्न करने की घोषणाएं करने से, दल परिवर्तन से समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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