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३८४ चिंतन की मनोभूमि संस्कृति का अर्थ है-मनुष्य की जय-यात्रा। मनुष्य अपनी साधना के बल पर विकृति से संस्कृति और संस्कृति से प्रकृति की और निरन्तर गतिशील रहता है। जीवन में विकृति है, इसीलिए संस्कृति की आवश्यकता है। परन्तु संस्कृति को पाकर ही मनुष्य की जय-यात्रा समाप्त नहीं हो जाती। उसे आगे बढ़कर प्रकृति को, अपने स्वभाव को प्राप्त करना होगा। यहाँ संस्कृति का अर्थ है-आत्म-शोधन। संस्कृति के ये विविध रूप और नाना अर्थ आज के साहित्य में उपलब्ध होते हैं। संस्कृति एक विशाल महासागर है। भारतीय संस्कृति की आत्मा : समन्वय :
भारतीय संस्कृति की विशेषता उसके आचार-पत स्वतन्त्र चिन्तन में, सत्य की शोध में और उदार व्यवहार में रही है। युद्ध जैसे दारुण अवसर पर भी यहाँ के चिन्तकों ने शान्ति की सीख दी है। वैर के बदले प्रेम, क्रूरता के बदले मृदुता और हिंसा के बदले अहिंसा दी है भारतीय संस्कृति की अन्तरात्मा है-विरोध में भी विनोद, विविधता में भी समन्वय-बुद्धि तथा एक सामंजस्य दृष्टिकोण। भारतीय संस्कृति हृदय और बुद्धि की पूजा करने वाली उदारपूर्ण भावना और विमल परिज्ञान के योग से जीवन में सरसता और मधुरता बरसाने वाली है। यह संस्कृति ज्ञान का कर्म के साथ और कर्म का ज्ञान के साथ मेल बैठाकर संसार में मधुरता का प्रचार तथा सरसता का प्रसार करने वाली है। भारतीय संस्कृति का अर्थ है विश्वास, विचार और आचार की जीती जागती महिमा। भारत की संस्कृति का अर्थ है-स्नेह, सहानुभुतिः, सहयोग, सहकार और सह-अस्तित्व। इस संस्कृति का संलक्ष्य है-सान्त से अनन्त की ओर जाना, अन्धकार से प्रकाश की ओर जाना, भेद से अभेद की ओर जाना तथा कीचड़ से कमल की ओर जाना। असुन्दर से सुन्दर की ओर जाना और विरोध से विवेक की ओर जाना। भारत की संस्कृति का अर्थ है—राम की पवित्र मर्यादा, कृष्ण का तेजस्वी कर्मयोग, महावीर की सर्वभूत हितकारो अहिंसा, त्याग एवं विरोधों की समन्वय-भूमि अनेकान्त, बुद्ध की मधुर करुणा एवं विवेक-युक्त वैराग्य और गाँधी की धर्मानुप्राणित राजनीति एवं सत्य का.प्रयोग। अतः भारतीय संस्कृति के सूत्रधार हैं-राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, और गाँधी। यह भारतीय संस्कृति की सम्पूर्णता है। भारतीय संस्कृति की त्रिवेणी :
भारत की संस्कृति का मूल स्रोत है—"दयतां, दीयतां, दाम्यताम्।" इस एक ही सूत्र में समग्र भारत की संस्कृति का सार आ गया है। जहाँ दया, दान और दमन है, वहीं पर भारत की संस्कृति की मूल आत्मा है। यह संस्कृति, भारत के जन-जन की और भारत के मन-मन की संस्कृति का मूल आधार है—दया, दान और दमन। प्राण-प्राण के प्रति दया करो, मुक्त भाव से दान करो और अपने मन के विकल्पों का दमन करो। भारत के जन-जन के मन-मन में दया, दान एवं दमन का ऊर्जस्वी भाव
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