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|१३८ चिंतन की मनोभूमि अभिमत मूल में दो तत्व हैं—जीव और अजीव। किन्तु उन दोनों की संयोगावस्था और वियोगावस्था को लेकर तत्व के सात भेद हो जाते हैं.-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष। जीव और अजीव ज्ञेय हैं, आस्रव और बन्ध हेय हैं तथा संवर और निर्जरा उपादेय हैं। मोक्ष तो जीव की अत्यन्त विशुद्ध स्थिति का ही नाम है। पुद्गल का जीव के साथ जो संयोग है, वही संसार है। जीव और पुद्गल का ऐकान्तिक और आत्यन्तिक जो वियोग है, वही मोक्ष है। बन्ध और आस्रव संसार के हेतु हैं तथा संवर और निर्जरा मोक्ष के कारण हैं। इस प्रकार जैन दर्शन प्रमेय के सात भेद स्वीकार करता है। इन सात प्रमेयों को जानने वाला प्रमाता कहलाता है और प्रमाता जिससे इन प्रमेयों को जानता है, उसे प्रमाण कहा जाता है। आगम की भाषा में इसी को ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय कहा जाता है। संक्षेप में, ज्ञान का वर्णन यहाँ इतना ही अभीष्ट है।
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