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(१३६ चिंतन की मनोभूमि ज्ञान के सीधे पाँच भेद किए गए हैं। भगवती सूत्र में और अनुयोगद्वार सूत्र में ज्ञान का चार प्रमाण के रूप में तर्क पद्धति पर वर्णन भी उपलब्ध है। नन्दी सत्र में पाँच ज्ञान का वर्णन आगम और तर्कशैली से भिन्न दर्शन शैली पर किया गया है। इस प्रकार आगम साहित्य में ज्ञानवाद की चर्चा बहुविध और अनेकविध पद्धति पर आधारित है। ज्ञानवाद के वर्णन की उक्त पद्धतियों को हम तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं.. आगमिक शैली, दार्शनिक शैली और तार्किक अर्थात न्याय शैली।
आगमिक शैली से पाँच ज्ञान का वर्णन—अंग, उपांग और मूलसूत्रों में उपलब्ध है। इसमें ज्ञान के सीधे पाँच भेद करके उनके उपभेदों का वर्णन कर दिया गया है। कर्म-ग्रंथों में भी ज्ञानवाद का वर्णन आगमिक शैली के आधार पर ही किया गया है। दार्शनिक शैली का प्रयोग नन्दी-सूत्र में उपलब्ध है। इसमें ज्ञान का सांगोपांग वर्णन किया गया है। जितने अधिक विस्तार के साथ में और जितनी सुन्दर व्यवस्था के साथ में पाँच ज्ञान का वर्णन नन्दी-सूत्र में किया गया है, उतने विस्तार के साथ और उतनी सुन्दर व्यवस्था के साथ अन्य किसी आगम में नहीं किया गया है। आवश्यक निर्युक्त में जो ज्ञान का वर्णन है, वह दार्शनिक शैली का न होकर आगमिक शैली का है। आचार्य जिनभद्र क्षमा-श्रमण कृत विशेषावश्यक भाष्य में पाँच ज्ञान का सांगोपांग और अति विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। इसकी शैली विशुद्ध दार्शनिक शैली है। यह एक ऐसा महासागर है। जिसमें सब कुछ समाहित हो जाता है। विशेषावश्यक भाष्य आगम की पृष्ठभूमि पर दार्शनिक क्षेत्र की एक महान देन है। आगम का ज्ञानवाद इसमें पीन और परिपुष्ट हो गया है। पाँच ज्ञान के सम्बन्ध में विशेषावश्यक भाष्य में जो कुछ कहा गया है, वही अन्यत्र उपलब्ध होता है और जो कुछ इसमें नहीं कहा गया , वह प्रायः अन्यत्र भी नहीं कहा गया है। आचार्य जिनभद्र क्षमाश्रमण के उत्तर-भावी समग्र दार्शनिक विद्वानों ने अपने-अपने ग्रन्थों में ज्ञानवाद के प्रतिपादन में और ज्ञानवाद की व्याख्या करने में विशेषावश्यक भाष्य को ही आधार बनाया है। इसमें ज्ञानवाद का प्रतिपादन इतने विशाल और विराट रूप में हुआ हैं कि इसे पढ़कर ज्ञानवाद के सम्बन्ध में अन्य किसी ग्रन्थ के पढ़ने की आवश्यकता ही नहीं रहती। आचार्य ने अपने युग तक की परम्परा के चिन्तन का इसमें आकलन और संकलन कर दिया है।
विशेषावश्यक भाष्य के बाद पाँच ज्ञान का सांगोपांग वर्णन अथवा प्रतिपादन उपाध्याय यशोविजय कृत 'ज्ञान बिन्दु' और 'जैन-तर्क-भाषा' में उपलब्ध होता है। जैन दार्शनिक साहित्य में उक्त दोनों कृतियों अद्भुत और बेजोड़ हैं। ' ज्ञान-बिन्दु' में पांच ज्ञान का वर्णन दर्शन की पृष्ठ भूमि पर तार्किक शैली से किया गया है। परन्तु 'जैन-तर्क-भाषा' में ज्ञान का वर्णन विशुद्ध तार्किक शैली पर ही किया गया है। उपाध्याय यशोविजय अपने युग के एक प्रौढ़ दार्शनिक और महान् तार्किक थे, इन्होंने अपने ग्रंथों की रचना नव्य न्याय की शैली पर की।वासनिक शैली का एक दूसरा
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