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जैन दर्शन की आधारशिला : अनेकान्त १२३ एक मनुष्य अकस्मात् किसी दूसरे के घड़े को उठा लेता है, और फिर पहिचानने पर यह कह कर कि यह मेरा नहीं है, वापस रख देता है । इस दशा में घड़े में असत् नहीं तो और क्या है ? 'मेरा नहीं है' इसमें मेरा के आगे जो 'नहीं' शब्द है, वही असत् का अर्थात् नास्तित्व का सूचक है। प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व अपनी सीमा में है, सीमा से बाहर नहीं। अपना स्वरूप अपनी सीमा है, और दूसरों का स्वरूप अपनी सीमा से बाहर है, पर सीमा है। यदि विश्व की हर एक वस्तु, हर एक वस्तु के रूप में सत् हो जाए तो फिर संसार में कोई व्यवस्था ही न रहे। दूध, दूध रूप में भी सत् हो, दही के रूप में भी सत् हो, छाछ के रूप में भी सत् हो, पानी के रूप में भी सत् हो, तब तो दूध के बदले में दही, छाछ या पानी हर कोई ले-दे सकता है । किन्तु याद रखिए - दूध, दूध के रूप में सत् है, दही आदि के रूप में वह सर्वथा असत् है। क्योंकि स्व-स्वरूप सत् है, पर स्वरूप असत् ।
वस्तुतः स्याद्वाद सत्य- ज्ञान की कुञ्जी है । आज संसार में जो सब ओर धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय आदि वैर-विरोध का बोलबाला है वह स्याद्वाद के द्वारा दूर हो सकता है । दार्शनिक क्षेत्र में स्याद्वाद वह सम्राट है, जिसके सामने आते ही कलह, ईर्ष्या, अनुदारता, साम्प्रदायिकता और संकीर्णता आदि दोष भयभीत होकर भाग जाते हैं । जब कभी विश्व में शान्ति का सर्वतोभद्र सर्वोदय राज्य स्थापित हो पाएगा, तो वह स्याद्वाद के द्वारा ही हो पाएगा यह बात अटल सत्य है ।
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