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प्रार्थना
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शास्त्रोंका हो पठन सुखदा, लाभ सत्संगतिका, सवृत्तोंका सुजस कहके, दोष ढाँर्फे सभीका, बोलूँ प्यारे वचन हितके, आपका रूप ध्याऊँ, तोलौ सेऊँ चरण जिनके, मोक्ष जोलौ न पाऊँ!
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सद्गुरु-संत महिमा
(दोहे) (१) सो जन जगत-जहाज है, जाके राग न रोष;
तुलसी तृष्णा त्यागी कै, गहेउ शील-संतोष। (२) मुख देखत पातक हरै, परसत कर्म बिलाहि
वचन सुनत मन मोह गंत, पूरव भाग्य मिलांहि (३) तनकर मनकर वचनकर, देत न काहू दुःख;
कर्मरोग पातिक झरे, निरखत सद्गुरु मुख।
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तीर्थ-सौरम
तशयंती वर्ष : २५
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