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किया धन्य गुजरात को, लेकर जन्म अनूप । 'राजचन्द्र' संज्ञा हुई,
भव्य रूप अनुरूप ॥ १ ॥ कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा, धरे धरणि पर पांव । लक्ष्मीनंदन नाम से,
धन्य ववाणिया गाँव ॥ २ ॥ जातिज्ञान जागा त्वरित,
चढ़ते विटप बबूल । शिक्षार्जन करते हुये,
रचा काव्य अनुकूल ॥ ३ ॥
बिता,
वैवाहिक जीवन
संयम
૧૫૪
श्रीमद् राजचन्द्र
विद्यावारिधि डॉ. महेन्द्रसागर प्रचंडिया, डी. लिट्.
जगा
आत्मिक ज्ञान । तप-तेजसे,
औ
किये योग- अवधान ॥४॥
તીર્ય-સૌરભ
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नीति और नैतिक क्रिया, करती जीवन सत्य-अहिंसा से बने, जीवन नित्य अनन्य ॥५॥
ज्ञान और श्रद्धान से, किया सफल संधान | मोक्षमार्ग में रमा तब, पूरा रूप से ध्यान ॥ ६ ॥ गांधी जैसे आपके, हुये शिष्य उगबाद। लेकर शिक्षा आपकी,
किया
देश - आजाद ॥ ७ ॥
सम्यक्त्वसे,
समता और
सधता
किया
धन्य ।
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जीवन- धर्म | आपने,
उजागर
जैन धर्म का मर्म ॥ ८ ॥
मंगल कलश
३९४, सर्वोदय नगर, आश्रमरोड, अलीगढ - २०२ ००१
રજતજયંતી વર્ષ : ૨૫
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